पहले तो समझ लो कि अधिकतर प्रेम होगा ही नहीं। कुछ देखोगे तुम कुछ लोगों के बीच घटते हुए। उसे प्रेम समझोगे। फिर चाहोगे कि तुम्हारे साथ भी घटित हो वो। जब नहीं घटित होगा तो तुम उसके पीछे पीछे दौड़ोगे। लेकिन वो तो रेस है, वो प्रेम कहाँ है? तुमसे प्रेम करने के लिए तुम्ह पर बंदिशें लगायी जाएँगी, तुम्हें लालच दिया जायेगा, तुम्हें बदलने को कहा जायेगा। तुम सब करोगे। लेकिन ये तो शर्तिया व्यापार है, प्रेम कहाँ है? तुम प्रेम करोगे बिना लाग लपेट के, तो तुम्हें बेवकूफ या झूठा समझा, दिखाया, और महसूस करवाया जायेगा। और क्योंकि तुम प्रेम चाहते हो बदले में, तो तुम उनकी राय खुद पर हावी भी होने दोगे। बदले में तुम्हें जो मिलेगा, वो तो विनिमय है, वो प्रेम कहाँ है? एक बात ज़रूर होगी। तुम, जो कि प्रेम करने और पाने निकले थे, स्वयं से ज़रूर प्रेम करना बंद कर दोगे, कि अब तुम बदल गए होंगे। सो, प्रेम मिला भी नहीं, और तुमने खो जाने भी दिया। ये तो प्रेम नहीं है। तो फिर, जब वाकई प्रेम होगा तब क्या होगा ?
#चेतो_दर्पण_मार्जनम्_अनुपमा - Musings Post 9 - 09.07.2021
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