Thursday, 27 January 2022

बच्चों को सेक्स के बारे में कब बताना शुरू करें ? – भाग 1

 

#sexuality_notes_by_anupama – 8

ये प्रश्न एक माँ ने पूछा है, लेकिन इसका उत्तर अधिकतर पेरेंट्स पर अप्लाई करेगा | आपको अपने घर, अपनी परिस्थितियों, अपने पेरेंटिंग पैटर्न्स, और अपने बच्चे की नीड्स के हिसाब से कुछ बदलाव करने पड़ सकते हैं | इस प्रश्न का उत्तर लम्बा भी है, इसलिए इसे दो या तीन भागों में लिखूंगी | पहला भाग ये रहा, बाकी भाग अगली पोस्ट्स में |

पहली चीज़ - मेरा अनुभव सिर्फ मित्रों के बच्चों से कभी कभार 'sex  ed  talk ' या 'वो वाली बात' करने तक सीमित है | मैं माँ नहीं हूँ, इसलिए मेरा उत्तर अध्ययन, और दूसरे एक्सपर्ट्स के अनुभवों पर ज़्यादा आधारित है | अगर आपको ये उत्तर सिर्फ एक माँ बन चुकी महिला से ही चाहिए, तो आप यहीं पढ़ना बंद कर सकते हैं |

दूसरी बात - अपने बच्चे को कब बताएं से ज़्यादा ज़रूरी सवाल है, अपने बच्चे को क्या और कैसे बताएं | आजकल बच्चों के पास जिस तरह सूचना की अधिकता, इंटरनेट की सुविधा, TV और अन्य मीडिया से मिल रहे अधकचरे ज्ञान की भरमार है, उनके सवाल, उनकी उत्सुकता, बहुत ही सामान्य है | ऐसे में बजाय उन्हें एक समय तक अनभिज्ञ रखने के, हमें इस बारे में सोचना चाहिए कि हम उन्हें उनकी आयु के हिसाब से क्या, कितना, और कैसे बताएं |

आप का सबसे पहला काम होना चाहिए कि आप खुद सेक्स के बारे में जानें, सीखें, और उसके बारे में स्वस्थ संवाद करने की आदत डालें | जब तक आप सेक्स सम्बन्धी संवाद को ले कर awkward  रहेंगे, तब तक आप बच्चे के साथ भी यह संवाद आराम से नहीं कर पाएंगे |

बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं, और वो असहजता, झूठ, टालमटोल को तुरंत भाँप लेते हैं | इसलिए उन्हें ये भरोसा होना ज़रूरी है कि उनके सवाल टाले नहीं जा रहे, और उनसे झूठ नहीं बोला जा रहा | आप माता-पिता के तौर पर अपने बच्चे को ये भरोसा तब तक नहीं दिला पाएंगे जब तक आप खुद इन कॉन्सेप्ट्स को ठीक से नहीं समझेंगे, व सेक्स और यौन स्वस्थ्य को ले कर एक सहज, स्वस्थ दृष्टिकोण विकसित नहीं करेंगे |

सहजता की शुरुआत आप यौनांगों को उनके नामों से बुलाने से कर सकती हैं ! आप आँख को 'मिचमिच' नहीं कहतीं तो फिर योनि या vagina  को 'नीचे', 'उधर', 'सुसु की जगह' क्यों कहती हैं, जबकि आप शायद जानती हैं, कि महिलाओं के शरीर में योनि, और मूत्रमार्ग अलग अलग हैं ? फिर आप लिंग या Penis को 'नन्नू' 'पीपी' क्यों बुलाएँगे, जब आप कान को 'खुसखुस' और गले को 'फुसफुस'  नहीं कहते?

मैं ये बिलकुल समझती हूँ कि शायद आप अपने बच्चे को 'योनि' और 'लिंग' जैसे शब्द न सिखाना चाहें, विशेषतौर पर इसलिए कि हिंदी में बोले जाते समय इन शब्दों के प्रति हमारी अपनी conditioning हमें असहज बनाती है, लेकिन ऐसे में आप इन अंगों के अंग्रेज़ी नामों का उपयोग कर सकते हैं | हमारी प्राथमिकता हमारे बच्चों की सहजता, उनकी समझदारी होनी चाहिए, भाषाई शुद्धता नहीं |

तो ये है पहला स्टेप | अंगों को उनके नाम से बुलाएं, ताकि सहजता की नींव शुरू से ही पड़े | अब अगला स्टेप  - इस संवाद की शुरुआत कैसे करें ? एक तरीका है कि आप अपने बच्चे के सवालों का इंतज़ार करें | आम तौर पर यदि आपका बच्चा 3 साल से बड़ा है, तो वो आपको या किसी अन्य महिला को प्रेगनेंसी में देखेगा | या तो उसे पता होगा कि उसका कोई भाई-बहन आने वाला है, या ये कि फलां आंटी के घर बेबी आने वाली है | उस उम्र में एक बहुत ही सामान्य सवाल होता है - बेबी कहाँ से आते हैं ?

ऐसे सवालों के जवाब माँ बाप अक्सर बहुत ही अजीब तरीके से देते हैं - भगवान जी के घर से, मंदिर से, हॉस्पिटल से, और पता नहीं कहाँ कहाँ से | आपके बच्चे की उम्र अगर 3 साल है तो आप कह सकते हैं, कि बेबी माँ के शरीर में बनते हैं, और अगर आपके बच्चे की उम्र 13 साल है तो आप कह सकते हैं कि माँ के शरीर में एक sac  या थैली होती है जिसे uterus  (गर्भाशय) कहा जाता है, और बेबी उसमें बनते हैं | इसके बाद संभव है कि आपका बच्चा आगे सवाल न पूछे और ये भी संभव है कि पूछ बैठे कि ये बेबी बनते कैसे हैं ?

आप कह सकती हैं, कि जब लोग बड़े हो जाते हैं, मम्मी पापा बनने के लायक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, और आर्थिक स्थिति में आते हैं, तो मम्मी-पापा, महिला पुरुष, आपस में, या डॉक्टर की सहायता से उस बेबी के बनने का प्रोसेस शुरू करते हैं | इस स्टेज पर डॉक्टर की बात करने या न करने का निर्णय आप बच्चे की आयु, या उसके प्रश्न की भाषा, या IVF / surrogacy का उसके प्रश्न से कितना सम्बन्ध है, इस आधार पर ले सकते हैं |

कभी कभी 10 - 12 साल के बच्चे भी कोई लेख, कोई पत्रिका, कोई वेबसाइट पढ़ कर पूछ सकते हैं, मम्मी surrogacy  क्या है, या पापा िवफ क्लिनिक क्या होती है | कभी कभी छोटे लड़के सेनेटरी नैपकिन देख कर पूछ सकते हैं ये क्या है, क्यों काम आता है ? जो लड़के coeducation में हैं, उन्हें तो बहुत बार स्कूल में sex ed  क्लास में, या batchmates  से पता चल जायेगा, लेकिन जो लड़के सिर्फ लड़कों के स्कूल्ज में पढ़ते हैं, उन्हें ये पता चले कोई ज़रूरी नहीं |

ऐसे में उनको डपटना, उनके सवाल टालना, उन्हें ये कहना कि ये सब फालतू की बातें हैं, या ये उनके लिए नहीं हैं लड़कियों की बातें हैं, वगैरह उन्हें छुप कर जवाब ढूंढने को प्रेरित करेगा | और ऐसे में वो क्या खोजेंगे, क्या जवाब पाएंगे, और उसका क्या असर होगा, इस पर आपका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं होगा | 

आपका संवाद आपके बच्चे के साथ कैसा होगा ये आपके बच्चे की आयु पर, उसके सवालों पर, और आपकी सहजता पर निर्भर करेगा | ये डाउनलोड नहीं है, जहाँ आपने टीचर की तरह क्लास दे दी, और बच्चे ने सुन लिया | ये संवाद प्लान करने के बजाय इनका अपने आप से फ्री फ्लोइंग होना ज़्यादा बेहतर है, क्योंकि प्लान्स अधिकतर फेल ही होते हैं, विशेष तौर पर बच्चों के साथ |

इसलिए इस संवाद को हमेशा दोतरफ़ा रखें | अपने बच्चे से पूछें उसे क्या समझ आया | उसकी समझ को जहाँ ठीक समझें वहां सुधारें भी | उससे पूछें अगर उसके और कोई प्रश्न हैं ? उसे ये भरोसा दिलाएं कि यदि उसके दिमाग में कोई भी प्रश्न हो तो वो आपसे बताये, पूछे, और ये कि आप उसे हमेशा जवाब देंगे, चाहे उसी समय, चाहे किसी एक्सपर्ट से सीख कर | ऐसे में बच्चा न सिर्फ आपके साथ सहज हो पायेगा, बल्कि ये भी समझ पायेगा कि जब आप ये स्वीकार कर सकते हैं कि आपको सब नहीं आता, तो उसके सवालों का भी मज़ाक नहीं बनेगा, और उसे कुछ भी पूछने की psychological  आज़ादी मिलेगी |

अब आज का अंतिम बिंदु | क्या हो अगर आपका बच्चा कोई सवाल न पूछे? ऐसे में आप खुद भी ये संवाद शुरू कर सकते हैं | "बेटा, आपको पता है फलां आंटी के घर में बेबी आने वाली है?' 'आपको पता है, बेबी कैसे बनते हैं?' ये एक बहुत नार्मल संवाद होगा, ठीक वैसे ही, जैसे आप घर में फ्रिज, नई कार, या नया टीवी डिसकस, या नया शहर, पापा के नए बॉस, मम्मी की नई फ्रेंड, या किसी की बीमारी को डिसकस करते हैं | जैसे जीवन में आना वाला और कोई भी परिवर्तन, और उसके बारे में होने वाला संवाद नार्मल है, वैसे ही ये भी | बस एक बार स्वस्थ तरीके से बात शुरू हो जाये |

डिस्क्लेमर - मेरी वॉल पर सेक्स और सेक्सुअलिटी के सम्बन्ध में बात इसलिए की जाती है कि पूर्वाग्रहों, कुंठाओं से बाहर आ कर, इस विषय पर संवाद स्थापित किया जा सके, और एक स्वस्थ समाज का विकास किया जा सके | यहाँ किसी की भावनाएं भड़काने, किसी को चोट पहुँचाने, या किसी को क्या करना चाहिए ये बताने का प्रयास हरगिज़ नहीं किया जाता | ऐसे ही, कृपया ये प्रयास मेरे साथ न करें | प्रश्न पूछना चाहें, तो वॉल पर पूछें, या फिर गूगल फॉर्म है, वहां पूछ सकते हैं | इन पोस्ट्स को इनबॉक्स में आने का न्योता न समझें |

©Anupama Garg 2022

 

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Wednesday, 26 January 2022

पढ़ने की आदत कैसे डालें - 1

आज के 10 - 12 साल पहले जब मैं CAT, IELTS, SAT,  Bank  PO वगैरह के लिए इंग्लिश पढ़ाती  थी,  तो एक सवाल मुझसे अक्सर पूछा जाता था | हम अच्छी रीडिंग हैबिट्स कैसे विकसित करें | शुरू शुरू में कोई 26 - 27  साल की मैं खुद, वयस्कों को पहली बार पढ़ा रही थी | मेरा कोई स्टूडेंट 21 साल से कम उम्र का नहीं था, इसलिए वो जवाब जो मैंने ग्यारहवीं, बारहवीं, के स्कूल जाने वाले बच्चों को biology , physics , और chemistry  पढ़ते समय दिए थे, वो जवाब इन विद्यार्थियों के लिए समुचित नहीं थे |

लेकिन एक चीज़ जो मुझे दोनों ही समय बहुत ही क्लियर थी, वो ये कि रीडिंग हैबिट्स का आपकी भाषा के चयन से कोई सम्बन्ध नहीं है | आप हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, तमिल, तेलुगु, किसी भी भाषा में पढ़ें, अगर आपका पुस्तकों का चयन अच्छा है, और अगर आपको पढ़ने का सही तरीका आता है तो आपकी रीडिंग हैबिट्स अच्छी हैं | आप अंग्रेजी पढ़ लेते हैं, लेकिन उसमें कूड़ा पढ़ते हैं, तो समस्या है | आप फ्रेंच का अख़बार तो पढ़ लेते हैं, लेकिन आपको मैनेजमेंट वोकैबुलरी फ्रेंच में काम लेनी नहीं आती, तो फ्रेंच कंपनी में मैनेजमेंट करना आपके लिए मुश्किल हो सकता है, और आपको फ्रेंच में पढ़ने के लिए मैनेजमेंट सम्बन्धी पुस्तकें पढ़नी होंगी, नोवेल्स नहीं |  



सो एक बात भाषा, और दूसरी बात ये कि आप अपनी रीडिंग हैबिट्स विकसित करना क्यों चाहते हैं ? अगर आपका ऑब्जेक्टिव मैनेजमेंट की पढाई करना है, तो बात अलग है |  यदि आपका उद्देश्य नई भाषा सीखना है, तो बात अलग है | अगर आपका उद्देश्य अंग्रेज़ी सीख के किसी लड़के या लड़की को इम्प्रेस कर के अपना साथी बनाना है तो बात बिलकुल ही अलग है | आपको अगर किसी बाहर के देश जाना है और इसलिए अंग्रेजी सीखनी है तो बात कुछ और है, लेकिन अगर आपको अंग्रेज़ी लिटरेचर, उसके कल्चर का स्वाद लेना है, तो बात बिलकुल ही स्वान्तः सुखाय है | तो जो आपकी शार्ट टर्म रीडिंग हैबिट्स हैं, उनके लिए  पुस्तकों  का चुनाव  आपके शार्ट टर्म लैंग्वेज गोल पर निर्भर करेगा | लेकिन आपकी लॉन्ग टर्म रीडिंग हैबिट्स 2 चीज़ों पर निर्भर करेंगी  - 1. consistency  निरंतरता, और 2. पुस्तकों के चुनाव में वैरायटी  | पुस्तकों का चुनाव ऐसा हो कि उसमें फिक्शन और नॉन-फिक्शन दोनों का ही अच्छा मिश्रण हो |

भाषा पढ़ने और पढ़ाने दोनों के ही समय मेरा निजी अनुभव ये कहता है, कि नॉन-फिक्शन या कथेतर साहित्य आपको विचार, सूचनाएं, सोचने  का तरीका, ये सब  देता है, वहीं कथा साहित्य और कविता आदि, आपको रचनात्मकता, शैली, सब्द विन्यास आदि  देते हैं | कथा साहित्य आपको भाषा के इस्तेमाल की बारीकियाँ भी  समझाता है | इसी तरह अच्छे लिखे नाटक आपको किरदार की बोली, जीवन शैली, उस भाषा को बोलने वालों की संस्कृति के बारे में भी बहुत कुछ बता सकते हैं | 

इसी तरह अगर आपकी चुनी हुई पुस्तकों में विषयों का भी अच्छा मिश्रण हो तो आपका पढ़ने का अनुभव और भी बेहतर हो जाता है | आपकी पसंद एक बात है, लेकिन जो विषय सीधे आपकी जीविका, आपकी पढाई लिखाई, या आपकी पसंद से नहीं जुड़े, उन्हें पढ़ना आपके विचार ही नहीं, आपकी भाषा (विशेष तौर पर vocabulary को समृद्ध कर देता है) | 
 
अगली बार निरंतरता और पढ़ने की आदत डाली कैसे जाये इस पर चर्चा करूंगी | कोशिश करूँगी कि मेरी एक रेकमेंडेड लिस्ट (बेसिक से एडवांस्ड स्तर की), भी शेयर करूँ | तब तक चाहें तो कमैंट्स में आपकी पढ़ी 5 पसंदीदा किताबों (कथा साहित्य या कथेतर कोई भी ) या पसंदीदा लेखक / लेखिकाओं के नाम अवश्य साझा करें | सब के लिए एक अच्छी खासी लिस्ट तैयार हो सकती है 


©Anupama Garg 2022


Sunday, 23 January 2022

समझें क्या है mansplaining ( मैंसप्लेनिंग )?



Mansplaining  शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से मिल कर हुई है - Man  और explaining  | Explaining शब्द का इनफॉर्मल रूप -splaining यहाँ काम में लिया गया है | इस नज़रिये से mansplaining  शब्द का शाब्दिक अर्थ है किसी पुरुष का किसी बात को समझाना | लेकिन इस शब्द का इस्तेमाल विशेष तौर पर तब किया जाता है जब कोई पुरुष किसी महिला को कोई बात ऐसे तरीके से समझाए, जिसमें उस महिला से खुद को श्रेष्ठ दिखाने का भाव हो | Mansplaining  विशेष तौर पर बेहूदा तब हो जाती है, जब कोई पुरुष किसी ऐसे विषय में किसी महिला को नीचा दिखने की कोशिश करे, जिसमें वो महिला एक्सपर्ट हो |

उदाहरण के लिए, जब कोई ऐसे पुरुष जिन्होंने जीवन भर खाना न पकाया हो, महिलाओं को बताने लगे कि सिलबट्टे पर चटनी पीसना महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए कितना अच्छा है, तो ये सिर्फ patriarchal  या पितृसत्तात्त्मक कमेंट, या स्त्रीद्वेषी कमेंट ही नहीं, या mansplaining  का एक बढ़िया उदाहरण भी है | क्यों? क्योंकि सिलबट्टे पर चटनी पीसने का अनुभव जितना औरतों को होगा, उसके आगे इन पुरुष का ये कहना कि ये चटनी की पिसाई के बारे में बेहतर जानते हैं, सिर्फ इनका पुरुष होने का श्रेष्ठताबोध है |

इस तरह का व्यवहार पुरुष की उस स्त्रीद्वेषी सोच का नतीजा है जहां माना जाता है कि महिलाएं किसी भी विषय पर बहुत अधिक जानकारी रखने के योग्य ही नहीं होतीं | कि महिला होने का मतलब ही है कम लायक होना |  कई बार मैं जब सेक्सुअलिटी पे पोस्ट ग्रुप्स में शेयर करती हूँ, तो देखती हूँ कि पुरुष दुराग्रह और कुंठा से भर कर मुझे ये बताने लगते हैं कि कैसे स्त्रियों को लज्जा, मर्यादा, आदि में रहना चाहिए, वरना सब सत्यानाश हो जायेगा | कभी कभी मेरी वाल पर या इनबॉक्स में  आ कर मुझे बताने लगेंगे मुझे कैसे लिखना चाहिए, वो भी तब जब कि न मुझसे परिचय होगा, न मेरे काम से |

मज़ेदार बात ये है कि कई बार ग्रुप्स में जब कोई पुरुष उनसे वही सवाल करने लगे, जो मैं करती हूँ, तो वे अपने सुर बदल लेते हैं | यानि औरत और आदमी अगर दोनों एक ही बात कह रहे हों, तो वो एक औरत की बात एक्सपर्ट होने के बावजूद भी ख़ारिज कर देंगे | ये mansplaining  का दूसरा प्रकार है | आपने कई बार देखा होगा पुरुषों को लेडी डॉक्टर को पेशेंट कैसे देखें के बारे में राय देते, और उनके परामर्श को ख़ारिज करते; लेकिन वही राय यदि पुरुष डॉक्टर दे, तो चाहे जूनियर ही क्यों न हो, ऐसे लोग सुन लेंगे | किसी महिला बैंकर को पर्सनल फाइनेंस का ज्ञान बिना मांगे पिलाते ऐसे पुरुषों को शेख़ीबाज़ कहना गलत न होगा |

Mansplaining  की सबसे मज़ेदार बात ये है कि अमूमन ऐसे पुरुष यानि mansplainer  जब किसी महिला की बात बीच में काट कर, बहुत ही सतही स्टार और तरीके से, अति आत्मविश्वास के साथ, ज़बरदस्ती कोई बात बोलते हैं, चाहे उन्हें उस विषय के बारे में कुछ न आता हो, चाहे सामने कोई एक्सपर्ट ही क्यों न बैठी हो | ऊपर से उन्हें ये मुगालता भी होता है कि वे ऐसा कर के उस महिला पर कोई अहसान कर रहे हैं  | समझदार लोगों के बीच ऐसा करने पर अक्सर ऐसे पुरुष अपनी भद्द खुद ही पिटवाते हैं |


Mansplaining तुलनात्मक रूप से एक नया शब्द है, लेकिन अधिकतर औरतों ने इसे भोगा है, महसूस किया है, कभी callout किया है, कभी नहीं | इसके असर कई बार औरतों के व्यक्तित्त्व, उनके आत्म विश्वास पर बहुत बुरा भी पड़ता है | विशेष तौर पर यदि ये पुरुष उनके नज़दीकी हों, जैसे पिता, बड़ा भाई, साथी आदि, या पॉवरफुल पोजीशन में हों जैसे कोई ऐसा बॉस जिसका अहसास ए कमतरी जाता ही न हो |

अब महिलाओं को mansplaining  बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए ये तो एक बात है | लेकिन दूसरी बात ये है कि पुरुषों को बहुत बार पता ही नहीं होता कि वे mansplaining  कर रहे हैं | ऐसे में जो चार्ट यहाँ लगा है, वो काफी काम का है | इसका हिंदी रूपांतरण भी मैंने साथ ही लगाया है ताकि भाषा के कारण समझ का दायरा सीमित न हो जाये | 



आखिरी बात - मैं उन महिलाओं में से हूँ, जो mansplaining  कतई बर्दाश्त नहीं कर पाती, इसलिए जब भी mansplaining  करने की बहुत इच्छा हो, तो प्लीज इस पोस्टर को ज़रूर देखें, और ब्लॉक गति से होने वाला अपना फायदा (interesting  पोस्ट्स) और नुकसान (ये आप पर निर्भर है), सोच लें |


©Anupama Garg 2022