Friday, 29 May 2020

प्रेम और प्रतीक्षा - 1


वो मिला मुझे,
ले कर ज्ञान का अथाह भण्डार
मैं प्रेम की तलाश में भटक रही थी
हमने विमर्श किया और चल दिए, अलग अलग रास्तों पर
समय की अथाह नदी के पार

वो मिला मुझसे,
लेकर हिंसा, अत्याचार
मैं क्षमा की याचिका थी
हमने रक्त बहाया और चल दिए, अलग अलग रास्तों पर
समय की अथाह नदी के पार

वो मिला मुझसे,
लेकर सहज स्वीकृति का भण्डार
मगर इस बार मैं प्रेम की क्षत्राणी थी
हम बैठे, हमने हमने शाब्दिक विवाद भर किया ,
और फिर चल दिए, अलग अलग रास्तों पर
समय की अथाह नदी के पार

वो मिला मुझसे,
लेकर असमंजस, संकोच
लेकिन मैं विश्वस्त थी,
उसके हाथ  थाम, पहले बैठाया,
फिर उसके मन की सुन कर उसे विदा किया मैंने,
हम चल दिए, अलग अलग रास्तों पर
समय की अथाह नदी के पार

काश, कोई अपना नग्न ह्रदय
और भग्न प्रतिमान ले कर मिलता
खोल देती मैं उसके लिए,
पुरातन, मगर अजर, अमर,
प्रेमिल ह्रदय के द्वार
हम बैठते, बात करते,
भिक्षान्न पकाते, नदी का निर्मल जल ओक भर कर पीते
और फिर चल देते
अलग अलग रास्तों पर
समय की अथाह नदी के पार |
आखिर और भी तो हैं,
जिन्हें प्रतीक्षा है !


© Anupama Garg 2020

5 comments:

  1. सहज , सत्य , सम्माननीय ..... Feelings 😔

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  2. निर्मल भाव व्यक्त करती प्रेम की कविता ।

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  3. बहुत खूब

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