Tuesday 24 May 2022

प्रेम क्या है

 

प्रेम क्या है विहान?

अगर ये जगत मिथ्या है, तो प्रेम भी मिथ्या ही हुआ न? और अगर ये जगत सच है, तो सभी कुछ तो प्रेम हुआ।

तुमने कहा निब्बा निब्बी का प्रेम नहीं पढ़ना, कुछ अच्छा पढ़ना है। अच्छा क्या है? कहो तो सत्य क्या है? सुंदर क्या है? शिव क्या है?

आज बहुत देर तक सोचती रही कि प्रेम पर क्या ही लिख लूंगी आखिर? यहाँ तक कि ढूंढते खोजते कुछ पुरानी पोस्ट्स भी खोज निकाली कि तुम्हें लिंक दे के कहूँगी "अभी यही पढ़ लो, ये भी बुरा नहीं है।" लेकिन, इससे पहले कि कुछ लिख पाती एक दोस्त से बात करने लगी, यहीं फेसबुक पर। 

उससे बात करते करते बात बहुत दूर निकल आई।  फेमिनिज़्म, धर्म, Saaaax, रिश्ते, बस 'प्रेम' शब्द छोड़ कर सब कुछ गुज़रा मेरे दिमाग से।  और जब वो सोने चला था, तो मैं जिसे आधे घंटे पहले किलक के नींद आ रही थी, उसकी रात की नींद उड़ गयी थी।  जैसे ही हमने बात करना बंद किया, मुझे भयानक अकेलापन महसूस हुआ। 

और उस अकेलेपन को ले कर मैं यूट्यूब गयी।  उसी अकेलेपन ने मेरा शुक्राना जगाया - अरे घर वाले, दोस्त, सब हैं तो।  और वहां से पिछले साल कोविड में  इस समय हर घर में फैली चिंता, इतने घरों में फैला सन्नाटा, हर तरफ मरघट वाला विषाद, और लोगों का  इतना सारा छूटा अधूरा प्यार।  कैसा प्यार होगा वो जो अपनों को ऐसे ही एकदम से छोड़ कर चला गया होगा ?

तुम बोर हो गए? लग रहा होगा, मैंने इन्हें प्रेम पर लिखने को कहा, और ये grief प्रोसेस करने बैठ गयीं।  क्या करूँ विहान? मुझे ख़ुशी वाला प्रेम बहुत पसंद है, लेकिन मुझे प्रेम की उदासी, उसका अधूरापन हमेशा ज़्यादा सच्चा लगता है।  अपने जैसा।  आधा-अधूरा। और फिर जो विचार तंतु खुलने लगे तो खुलते ही गए।  मैंने शुक्राना भी कर लिया, अपनों की खैर के लिए दुआएं भी मांग लीं, मेडिटेशन  भी कर ली, लेकिन फिर भी जब सो नहीं पायी, तो ये पोस्ट लिखने बैठी हूँ। 

मेरे लिए यही प्रेम है ! इंसान होने का अधूरापन।  टूटे हुए वादे।  अनकही बातें।  ख़ुशी में नज़र लगने का डर, और इतनी तेज़ी से धड़कता दिल कि लगने लगे जैसे "दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं, याद इतना भी कोई न आए"।  

मैं प्रेम के बारे में क्या सुन्दर लिखूं? ये कि जब टूटता है, तो तुमको भी आधा मार जाता है ? ये कि जब मिलता है भरपूर मिलता है? ये कि प्रेम गली अति साँकरी? ये कि वक़्त रहते अपने लोगों का प्यार पहचान लेना चाहिए? तुम्हीं बताओ प्रेम के बारे में क्या है जो नया है विहान ?

बल्कि, जैसा हम प्रेम को समझते हैं, उसका कितना हिस्सा बाज़ार है, कितना हिस्सा समाज, और कितना हिस्सा खुद, ये भी कहाँ पता है मुझे? खाली कहने को प्रेम कह दूँ किसी चीज़ को?

मुझे वही अधूरा लेकिन जलता हुआ प्रेम आता है, जो लड़ने-रूठने-मनाने में, जीने-मरने में, कसमें खाने - वादे तोड़ने में होता है। मुझे वही आधा-अधूरा प्रेम आता है जिस पर कोई हैप्पी एंडिंग वाली फिल्म नहीं बनती; लेकिन जिस पर लिखने के लिए कोई ट्रैजिक कहानियाँ भी नहीं होतीं।  रोज़मर्रा वाला एवरीडे प्रेम।  प्रेम जो नहीं मिलता, कभी कभी परिवार से, कभी कभी निब्बा निब्बी से, कभी कभी दोस्तों से,  यहाँ तक कि बहुत बार खुद से भी।  लेकिन प्रेम जो जागृत है, जो ज़िंदा है। 

सुनो, सच ये है कि मैं प्रेम के बारे में ज़्यादा कुछ जानती समझती नहीं।  मैं बस इतना जानती हूँ कि जब, जो, जैसा महसूस हो, उसे सामने वाले से, तब, वैसा ही कह पाने की स्पेस होना, शायद प्रेम की सबसे बड़ी निशानी है मेरे लिए।  Privilege  है इस तरह का प्रेम, समझती हूँ, लेकिन ऐसा ही है मेरा वाला प्रेम। जो जीवन में जो करता है अपने अस्तित्त्व के हर कतरे के साथ करता है।  लिखता है, तो सब झोंक देता है लफ़्ज़ों में; गाता है तो रो भी लेता है; पढ़ाता है तो सीख भी लेता है।

प्रेम जो जब होता है तो तुम्हारा पोर पोर ज़िंदा आग से भरा होता है। प्रेम जो जलता है।  मुझे और कोई प्रेम नहीं आता दोस्त।  और जब जब मुझे ऐसा प्रेम महसूस होता है, तो आसमान में चमकता सूरज मेरी आँख में आँख डाल कर मुझे प्रेम की चुनौती देता है।  हवा सरसराती हुई बाल बिखेर के चिढ़ाती है, मनो अभी पिलो फाइट होगी।  जल मेरे साथ एक हो कर, बिना मुझे Dominate किये, मेरा 70 % बन जाता है; मुझे भीतर से ज़िंदा, और बाहर से निर्मल करता है।  मिट्टी पैरों में लिपटती, धूल सी इठला के सर चढ़ती, कभी कभी आँख में गिरी, रड़कती सी, अलग ही कुछ नाराज़ - सा कह जाती है।

कभी कभी प्रेम में ऐसा लगता है, कि देह मिटटी हो जाये, और रूह आसमान। किसी और के आँसू मेरी आँख से झरते जाते हैं, बेसाख्ता।  बाबा फरीद की आवाज़ गूंजती है अचानक कहीं - "जा तुझे इश्क़ हो" !

 

©Anupama Garg 2022

Monday 23 May 2022

Benevolent Sexism

 समझिये क्या है बेनवॉलेंट सेक्सिस्म (benevolent sexism ) .

ये महिलाओं  के प्रति द्वेष जितना बुरा नहीं दीखता।  लेकिन है वही।  मीठे शब्दों की चाशनी में, चिंता करने की  आड़ में, सपोर्ट का मुलम्मा पहना कर जब औरतों के प्रति चली आ रही स्त्रीद्वेषी बातों को ही रूप बदल कर जस्टिफाई किया जाता है तो वो benevolent sexism है।  ऐसा करने वाले स्त्री पुरुष दिखते तो भले हैं, लेकिन होते नहीं।  

उदाहरण - किसी लड़के ने किसी लड़की को सोशल मीडिया पे इनबॉक्स में वाहियात मेस्सगेस भेजे।  लड़की ने स्क्रीनशॉट चिपकाया।  आपने उस दुष्ट इन्बॉक्सिए को छोड़ कर महिला से कहा - देखिये आपके भले की ही कह रही /रहा हूँ, ये सब तो होता ही है।  मर्द सुधरते कहाँ हैं जी, आप ध्यान देना बंद कीजिये। अपनी एनर्जी / अपना समय बर्बाद मत कीजिये।   

ये विक्टिम शमिंग तो है ही,  benevolent sexism भी है। आपके हिसाब से महिला को शौक है अपनी एनर्जी / अपना समय बर्बाद करने का?  क्यों नहीं सुधरेंगे साहब मर्द ? आप में और रेपिस्ट से शादी करने की सलाह देने टाइप वाली खाप पंचायत में फर्क क्या रहा फिर?

ऐसे ही कल एक पोस्ट पढ़ी।  एक जाने माने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, journalist जो रोज़ एक कहानी सुनाते हैं, उन्होंने अपने हालिया ऑपरेशन और पत्नी  गुणगान गाये।  बताया कैसे पत्नी का वही ऑपरेशन 20 साल पहले होने पर उन्हें कोई होश नहीं था कि कैसे ध्यान रखना है ? उन्होंने लच्छेदार शब्दों में कहा औरतों को व्रत नहीं करने चाहिए, आदमी को औरत की लम्बी उम्र के लिए व्रत करने चाहिए।  कैसे उनकी दादी महान थीं, लेकिन माँ के गुजरने के बाद पिता टूट गए।  और तो और कैसे औरतें जी लेती हैं पतियों के मरने के बाद, विधवाओं को प्रताड़ना पहले मिलती थी, लेकिन ' बेचारे' जी भी नहीं पाते।  

मुझे सिर्फ इतना कहना है -  ये भी benevolent sexism hai, महिलाओं की सेवा, उनके काम, उनके त्याग, आदि का महिमामंडन सदियों से चला आ रहा tool है। शब्द कुछ भी इस्तेमाल किए गए हों, सिर्फ लच्छे लपेट देने से और भावना की चाशनी में डुबो देने से inherent sexism चला जाए ज़रूरी नहीं। संवेदनशीलता और समझ एक ही बात नहीं होते।

व्रत के बदले व्रत करने के वादे सिर्फ यही हैं,वादे। व्रत से उम्र लम्बी नहीं होती।  ये एक अलग बात है कि व्रत आस्था की ज़मीन से भी उपज सकता है, और कंडीशनिंग से भी।  इसलिए ये कहना कि महिलाओं को व्रत छोड़ देने चाहियें, पुरुषों को करने चाहियें, का मतलब है कि औरतों पे subconscious pressure डालना और ये कहना कि देखो व्रत करने से प्रभाव पड़ता है।  उसका नतीजा? गिल्ट ट्रिप।  जमीनी बदलाव इन वादों से नहीं आते, ये आप सब भी अच्छी तरह  जानते हैं, मैं भी, और लेखक महोदय भी । न जानते तो व्रत से ही क्यों न जी लेते, सर्जरी क्यों करवानी थी ?   

ये  वैसे वाला लेख है जिसमें देखो मेरी दादी कितनी महान थीं, मेरी पत्नी कितनी महान है। मैं तो एक ग्लास भी खुद नहीं उठा के रख पाता यार, पत्नी न हो तो मेरा ध्यान कौन रखे टाइप।  क्यों जी, अपनी तबियत का ध्यान रखना पुरुषों इतना बोझिल लगता है कि महिला न हो तो पुरुष जी नहीं पाता, लेकिन पत्नी पे दोगुना भार डालते समय याद नहीं आता कि ये इंसान है मशीन नहीं?

बीमारी में साथी का, बल्कि किसी भी करीबी का ख्याल रखना नॉर्मल है, स्त्री की महानता नहीं। और पुरुष को भी आना चाहिए, इसमें कुछ अनोखा नहीं है। पुरुष को सर्वाइवल स्किल्स सीखने की बजाय व्रत करना सिखाएंगे? अपनी बीमारी में खुद का बेसिक ख्याल कर पाना (गंभीर बीमारियों को छोड़ कर), ये याद रख पाना कि करवट किस ओर लेनी है, इतना बेसिक सर्वाइवल स्किल्स का हिस्सा है। सबको आना चाहिए। क्या औरत क्या आदमी।

लेकिन यहां तो सबको सेवादारनियां चाहिएं, कर्तव्य के नाम में ममता के नाम में, त्याग के नाम में, प्यार के नाम में। अब ये नया मुलम्मा है, अजी इनको खुशी मिलती है ये सब कर के। इनके तो जीना का तरीका, जीने की वजह ये ही है ।

तो ऐसा है - खाली इन्फ्लुएंसर या बड़के भैया दीदी, हो जाने से स्त्रीद्वेष चला जाये ज़रूरी नहीं।  द्वेष भी चला जाये ये भी ज़रूरी नहीं।  कई लोग छुपाने को मीठी मीठी लपेटते हैं, ऐसों से सावधान रहें।  असलियत पहचानें।  वो कहते हैं न दिखावे पे न जाओ, अपनी अकल लगाओ !


©Anupama Garg 2022

Friday 20 May 2022

English and Me

मुझे इंग्लिश क्यों पढ़ानी है ?
मेरा स्वार्थ है।  मुझे उन लोगों के साथ बात करने में, ब्रेनस्टॉर्म करने में मज़ा आता है, जिनका एक्सपोज़र अच्छा हो। ये बात सच है कि इंग्लिश एक्सपोज़र का बेंचमार्क नहीं है।  लेकिन ये भी सच है, कि अच्छा लगे या नहीं, जितनी भाषाओँ से अनूदित साहित्य (कथा-साहित्य भी, और कथेतर साहित्य भी ) इंग्लिश में मिलता है उतना हिंदी में तो नहीं ही मिलता।  अनुवाद का स्तर भी बहुत अच्छा नहीं होता।  ऐसे में मेरे आस पास के इंटेलीजेंट शार्प लोग अगर अंग्रेजी सीखें तो मेरा अपना भी स्वार्थ है।  

तो फिर पैसे क्यों लेने हैं ?
क्योंकि भैया, भूखे भजन न होइ।  मैं किसी के गले पड़ के तो अंग्रेजी सिखाती नहीं।  अगर कोई सीख रहे हैं, तो कुछ तो उनकी ज़िन्दगी में भी बदल रहा होगा सीख के ? सोच के देखिये।  कितने लोग मिलते हैं शिकायत करते हुए कि काश हमें कोई अंग्रेजी सिखाता।  हमारी ज़िन्दगी में ये बदल जाता, वो हो जाता।  लड़की पट जाती या लड़का पट जाता, इंटरव्यू क्रैक हो जाता, एग्जाम क्लियर हो जाता, प्लेसमेंट हो जाता, और कुछ नहीं तो हम अच्छी पुस्तकें पढ़ लेते। इस सब के बाद भी अगर मैं फीस लिए बिना अंग्रेजी सिखाऊँ तो मेरे घर का राशन पानी, और संडे को कोक बिरयानी का इंतज़ाम आप कर दो यार !

इतने सब यूट्यूब चैनल और किताबें हैं तो, फिर आप से क्यों पढ़ें?
अगर यूट्यूब चैनल और किताब से सीखने वाले आप होते, तो ये सवाल ही न होता।  डिस्कशन, explanation, इंडस्ट्री में लिखने बोलने पढ़ने, अंग्रेजी से दाल रोटी कमा के खाने का लगभग 20 साल का अनुभव है।  मिल जाये यूट्यूब पे तो ज़रूर लीजिये।  मुझे आपके लिए ख़ुशी ही होगी।  

आप से सीखने के लिए क्या करना पड़ता है ?
हर बहाना 6  महीने के लिए बिलकुल छोड़ देना पड़ता है।  वीडियो को क्लास का substitute नहीं समझना होता। उसके बाद लगातार अभ्यास करना पड़ता है। भाषा को जीना पड़ता है।  बार बार बोल कर ज़ुबाँ पे अल्फ़ाज़ का स्वाद चखना पड़ता है।  किताबों से इश्क़ लड़ाना होता है।  फिर भी कभी कभी डाँट  पड़ती है।  

आप व्याकरण पर इतना ज़ोर क्यों देती हैं ?
क्योंकि व्याकरण के बाहर की खूबसूरती के पैमाने तब समझ आते हैं जब पहले व्याकरण की खूबसूरती समझ आये।  रूल समझेंगे तभी तो उसे सुंदरता से तोड़ेंगे।  जब कहीं अटकेंगे तो गूगल इस्तेमाल किये बिना अपनी गलती कैसे सुधारेंगे अगर ये नहीं जानेंगे कि व्याकरण में इस विषय को कहाँ ढूँढा जाये।  

आप कैसी टीचर हैं ?
मेलोडी खाओ, खुद जान जाओ :D


#English_With_Anupama

©Anupama Garg 2022

Wednesday 4 May 2022

Gratitude Journal 2022 - 3 - Strength in the Face of Adversity

प्यार क्या है ? आपके घर के नीचे की किराने की दूकान वाली भाभी, जब अपने लड़के को कहतीं हैं, दीदी के घर में राशन नहीं है, 6 महीने बाद घर खुला है, पहले सामान पकड़ा के आ जाओ। आपके पापा मम्मी आपको दिन में 3 बार फ़ोन करना चाहते हैं, लेकिन एक ही बार करते हैं, कि आप काम कर रहे होंगे। आपके एक दोस्त की बेटी सुबह आपके गले लग के आपके घर से अपने घर जाती है। आपकी दूसरी दोस्त की मम्मी आपको गले लगा के आपका सर, आपका कन्धा चूम लेती हैं, वैसे ही जैसे वो अपनी बेटी का चूमती हैं।

आपका एक और दोस्त आपको कहता है, तुम जो कर रही हो, अच्छा कर रही हो, करती रहो । लोग जो आपसे पहले कभी नहीं मिले, आपको ऑफलाइन नहीं जानते, ऑस्ट्रेलिया में बैठ के, सोने के वक़्त, जाग कर आपकी क्लासेज अटेंड करते हैं। आप उन्हें डांटते हैं तो वे सम्मान से चुप चाप सुन लेते हैं। आप उन्हें प्यार से पढ़ाते हैं, तो मन भर के आपको प्यार देते हैं, यहाँ तक कि बैच में एक दूसरे को भी हद से बाहर जा कर हर संभव तरीके से सपोर्ट करते हैं।

और इस सब के बीच एक बेहूदा आदमी आपको किसी अनजान नंबर से फ़ोन करता है। इसे लगता है कि आपके टिंडर पर होने का मतलब उसे सेक्स मिलने की गारंटी है। इसे लगता है कि आपके सेक्स, polyamory , या BDSM बारे में बात करने का मतलब है कि आप उसकी भोग्या हैं. इसे लड़की की ना में हाँ सुनाई देती है। यह आपके कमिटमेंट को दिखाने वाली बातों को तोड़ मरोड़ कर आपको ही culprit बनाने की कोशिश करता है। ये आपको धमकी देता है, आपको डराने की कोशिश करता है। जब इसका बिलकुल बस नहीं चलता, जब इसकी कॉल रिकॉर्ड पर डाल दी जाती है, तो ये आपको रेप की धमकी देता है, आपसे पूछता है कि आप जैसी बदसूरत लड़की को कोई प्यार कर ही कैसे सकता है ?

और आप चूँकि क्लास में हैं, आपको नहीं पता ये कॉल किस नंबर से आयी है। आप ये नहीं जानते हैं कि ये आदमी वही लफंगा है, जो पिछले तीन साल से हर 6 - 8 - 10 महीनों में अपना नंबर बदल कर आपको harass करता आया है, और आप इसे ब्लॉक और इग्नोर करते आये हैं। और क्योंकि अभी आपको नहीं पता कि ये potential rapist है कौन, तो आप एकदम डिस्टर्ब हो जाते हैं। आप जैसे तैसे अपना दिमाग ठीक कर के क्लास करते हैं।

लेकिन आप एक पैनिक अपडेट डाल चुके हैं, जिसे अगले ही मिनट हटा लेते हैं, कि पैनिक में काम करना सामान्यतः आपकी आदत नहीं, specially आड़े तिरछे मामलों में। इतने में आपकी एक दोस्त आपकी ये फेसबुक अपडेट देख लेती है, जिसे आपने बमुश्किल एक ही मिनट में डिलीट कर दिया होता है, और अपना whatsapp नंबर मैसेज कर के कहती है, इमरजेंसी से अकेले डील करने की, घबराने की ज़रूरत नहीं है। इसने आपसे कभी बात नहीं की है, ये दुनिया के दुसरे छोर पर रहती है, ऑनलाइन friendships इसकी preference नहीं है, लेकिन ये आपको खाना, म्यूजिक, जोक्स,memes कुछ भी जो आपको रिलैक्स करे, भेजना भेजना चाहती है।

मुझे जो करना था,वो मैं कर चुकी हूँ। वकील की सलाह से बचा खुचा कल कर लिया जायेगा। इसलिए मुझे ये न बताएं कि मुझे सेक्सुअलिटी पर क्यों नहीं लिखना बोलना चाहिए। मुझे ये हरगिज़ न बताएं कि मुझे अपनी निजी ज़िन्दगी में कैसे रिश्ते बनाने चाहियें। लेकिन ये ज़रूर करें, कि आपके आस पास के दो कौड़ी के आदमी जिनके प्रोफेशनल credentials हैं, न कोई औकात, सिवाय बाप के खर्च पे फॉरेन पढ़ के आ जाने के; उन्हें कॉल आउट करें। बल्कि उन्हें ही क्यों, अपने आस पास के हर मर्द-औरत, हर पोटेंशियल एब्यूज़र को कॉल आउट करें।

प्यार सिर्फ वो नहीं है, जो मेरे आस पास के लोग मुझसे करते हैं। प्यार ये भी होगा कि हमारे आस पास के लोगों को हम वहशीपन करने से पहले ही ठोक पीट कर सीधा कर दें।

बाकी रहा मेरा, तो मुझे जानने की तुम्हारी औकात नहीं है बे चिरकुट (अगर तुम किसी फेक ID से ये पढ़ रहे हो), और मुझे तुम क्या आउट करोगे, मैंने जिस दिन पहली बार सोशल मीडिया पे अपना मुंह खोला था, उस दिन तुम्हारे जैसों को नाली में बहाना पहले सीख के आयी थी। बाकी तुम्हें सेक्स चाहिए हो या प्यार, लायक नहीं बनोगे तो मैं क्या, कोई लड़की कभी नहीं देगी। लायकात बनाओ, बकवास से कुछ नहीं मिलता इस दुनिया में।

और रहा मेरा, तो मैं उनमें से हूँ, जो इस एक्सपीरियंस से भी नयी लर्निंग ले के, solidarity, सपोर्ट, और ताकत ले के निकलूँगी। उस काबिलियत के लिए शुक्राना है,शुक्राना रहेगा <3 
 
#शुक्राने_की_डायरी_से -4©Anupama Garg 2022 

Monday 2 May 2022

सहवास, समझदारी, और सहमति (Consent)

#sexuality_notes_by_anupama – 14

पहली बात, पोस्ट्स की पूरी सीरीज़ है, पढ़ेंगे तो कुछ सीखेंगे। दूसरी बात, भाषा का संयम रखें। यहाँ ट्रोलिंग, बदतमीज़ी, कुंठा, द्वेष, मर्यादा, संस्कारिता, शुचिता, ढ़ोंगीपन, आदि के लिए जीरो टॉलरेंस की नीति है।  तीसरी बात सवाल सिर्फ गूगल फॉर्म में।  और कहीं जवाब नहीं दिया जायेगा। 

दुःखद है कि सेक्स से obsessed  एक देश में जहाँ 130 करोड़ जनसँख्या है, कामसूत्र का क्लेम है, वहाँ या तो सेक्स और ऑर्गास्म के बारे में बात नहीं होती, या बात होती है तो धमकियों, द्वेष, हिंसा भरी। मैरिटल रेप यहाँ जायज़ समझा जाता है, सदियों से स्त्री का रोल महज पति की सेवदारनी का रहा है।  यहाँ होली है की आड़ में बेहूदे मर्द रिश्तेदारों के छिछोरेपन को बर्दाश्त करना संस्कृति है।  लेकिन ऑर्गास्म की बात करना लक्ज़री है? अगर औरत के ऑर्गास्म की बात करना खाये अघाये पेट का काम है, तो ऐसे ही 130 करोड़ हो गए?

खाये अघाये लोगों के मैसेज आये हैं मेरे पास।  पिछले कुछ महीनों में मेरे पास आये लगभग 100 प्रश्नों में से एक भी इस बारे में नहीं था, कि मैं अपनी पार्टनर को संतुष्ट कैसे करूँ।  मुझे बड़े बूब्स पसंद हैं, मुझे शीघ्रपतन है, क्या वो मुझे छोड़ देगी, मेरा साइज छोटा है, मुझे पोर्न की लत है, मुझे हस्तमैथुन की आदत है, सब सुना मैंने। लेकिन किसी को ये पूछते नहीं सुना, कि मैं अपनी पत्नी को खुश कैसे करूँ ? मैं ये कैसे जानूँ कि मेरी पत्नी को सुख मिला या नहीं ?

ऐसे में सहवास में सहमति के बारे में बात करना हर बात से अधिक ज़रूरी हो जाता है।  इसलिए आज की ये पोस्ट कंसेंट पर।

मुझसे बार-बार सवाल पूछा जाता है कि वास्तव में  सहमति है क्या ? किसकी सहमति मायने रखती है? क्या होता है जब सहमति के दायरों का उल्लंघन किया जाता है? किस परिस्थिति में कहेंगे कि सहमति की सीमाओं का उल्लंघन या अतिक्रमण हुआ? सहमति से जो दायरे तय किये गए, उनका अतिक्रमण न हो, इसके लिए क्या किया जा सकता है ? कैसे तय करें कि ये 'ना में हाँ' वाला मामला है, या 'ना का मतलब ना' वाला?

सहमति वास्तव में है क्या?

यहाँ एक बात तो ये है,  कि सहमति किसी काम को करने की व्यक्ति की इच्छा की स्पष्ट अभिव्यक्ति है।  यानि ये, कि यदि साफ साफ 'हाँ' न कहा गया हो तो उसे सहमति नहीं माना जाना चाहिए।  जब कोई कहता है कि 'मुझे नहीं पता' , या 'शायद' तो यह सहमति नहीं है। जब वे 'शायद' कहते हैं, तो यह चर्चा और अन्वेषण करने का निमंत्रण है, लेकिन यह सहमति नहीं है। सिर्फ इसलिए कि किसी ने मुस्कुरा कर, 'नहीं' बोला, इसलिए ये मान लिया जाये कि उनकी हाँ है, ये बेहूदी सिर्फ फिल्मों में ही अच्छी लगती है।  'ना में हाँ' टाइप की बकवास असली ज़िन्दगी में बहुत वाहियात है। 

दूसरा पक्ष सहमति का ये है, कि सहमति देने के लिए, दोनों, या सभी भागीदारों का वैधानिक रूप से वयस्क होना ज़रूरी है। वयस्कता की आयु 18 वर्ष है।  क्या ये आयु कम होनी चाहिए, ज़्यादा, या कुछ और, ये इस पोस्ट का विषय नहीं है। इसी तरह नशे के प्रभाव में दी गयी, या धमका कर ली गयी सहमति अमान्य है।  किसी को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचाने की उसकी सहमति भी अमान्य है। किसी भी प्रकार की गैर कानूनी गतिविधि में हिस्सेदारी की कंसेंट, भी गैर कानूनी है। 

तीसरी बात, सहमति झूठ बोल कर, फुसला कर, बिना संभावित परिणामों के बताये या समझे, जब ली या दी जाये, तो वैधानिक रूप से भले ही वो मान्य हो, लेकिन, नैतिक रूप से देखा जाये तो वो अमान्य है।  वह सहमति नहीं कही जा सकती ऐसा ethics of sexuality के शोधकर्ताओं का मानना है। 

सहमति या कंसेंट के साथ एक बहुत ध्यान देने योग्य बात ये है कि किसी चीज़ के लिए एक बार कंसेंट देने का मतलब ये नहीं, कि हर बार कंसेंट है।  ऐसे ही किसी एक चीज़ के लिए कंसेंट देने का मतलब ये नहीं, कि उससे सम्बंधित सभी चीज़ों के लिए कंसेंट है।  इसे ऐसे समझें, कि यदि कोई व्यक्ति सेक्स करने के लिए एक बार राज़ी हो, तो इसका मतलब ये नहीं कि हर बार रज़ामंदी है।  इसी तरह सेक्स करने की रज़ामंदी का मतलब ये नहीं है, कि बिना condom के सेक्स करने की रज़ामंदी भी है।  हो सकता है किसी ने एक बार वाइब्रेटर के इस्तेमाल के लिए हाँ की हो, लेकिन उसी व्यक्ति को डिल्डो के इस्तेमाल से आपत्ति हो। 

सबसे ज़रूरी बात, अवधारणा के स्तर पर (conceptually)कंसेंट का व्यक्ति के लिंग से कोई लेना देना नहीं है।  ये सच है, कि पितृसत्तात्मक समाज में मैरिटल रेप, महिलाओं की गैर-रज़ामंदी की अवहेलना, बहुतायत में देखने को मिलती है, और कई बार कुछ वाहियात biased फैसले भी सुनने में आते हैं।  लेकिन वास्तव में, पुरुषों और महिलाओं की कंसेंट की एक जैसी वैधानिक और नैतिक अहमियत है। 

कई प्रकार की सेक्सुअल एक्टिविटीज़ में एक कॉन्सेप्ट है consensual  non - consent  का। इसे समझाना और समझना दोनों ही काफी मुश्किल है।  इसे प्रैक्टिस करने के लिए जिस तरह का भरोसा, जिस तरह  की सम्प्रेषण कला, जिस तरह की समझदारी की आवश्यकता है, वो आम तौर पर नहीं पायी जाती।  इसलिए हाथ जोड़ कर निवेदन है, कि यदि अपने पार्टनर पर अँधा भरोसा, और कुछ गलत हो जाने की अवस्था में बर्दाश्त का सब्र न हो, तो इस क्षेत्र को पूरी तरह निषिद्ध रखें। 

अब इस पोस्ट का सबसे ज़रूरी हिस्सा।  ये कैसे सुनिश्चित करें कि कंसेंट का सम्मान किया जायेगा, तथा उसकी अवहेलना, उसकी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं होगा?

1.       सबसे पहले, संवाद करें; बहुत डिटेल में।  ये कहना कि इससे excitement ख़त्म हो जाता है, उत्तेजना ख़त्म हो जाती है, सिर्फ ज़िम्मेदारी से भागने के बहाने हैं। अपने साथी को, उनकी पसंद, नापसंद को पूछें, जानें, समझें, स्वीकार करें।  अपनी पसंद नापसंद उन्हें बताएं।  एक दूसरे पर थोपा-थापी न  करें, उससे कुछ नहीं मिलेगा। 

2.       दूसरी बात किसी भी नए व्यक्ति, या अजनबी के साथ पहले दिन इंटिमेसी या शारीरिक नज़दीकी बढ़ाने की जल्दबाज़ी में न रहें।  अगर अब तक सेक्स नहीं किया है, और अगर एक हफ्ता - 2 हफ्ते और नहीं करेंगे, तो जान नहीं निकल जाएगी।  सामने वाले को जान समझ लें, एक दूसरे की सेक्सुअल हिस्ट्री,सेक्सुअल पैटर्न्स, मेडिकल हिस्ट्री, STI  / STD रिपोर्ट्स शेयर कर लें। 

3.       सेफ वर्ड्स, सेफ कॉल्स के बारे में बात करें।  न कहने का एक प्रोटोकॉल तय करें। (इस बारे में जल्द ही विस्तार से बात करूंगी )।  Condoms के इस्तेमाल के बारे में, पिल्स के बारे में, यौन सुरक्षा के बारे में, यदि कोई गंभीर नहीं है, तो इस बात की क्या गारंटी है कि वो आपकी 'हाँ' या '' को गंभीरता से लेंगे?

4.       संदेह की स्थिति में सावधानी बरतें।  मान लिया कि सेक्स के बीच में रुकना निराशाजनक होता है, तकलीफदेह भी हो सकता है।  लेकिन अपने साथी को शारीरिक या मानसिक रूप से दर्द पहुँचाना (चाहे गलती से ही सही), कहीं अधिक निराशाजनक है ! असंतुष्ट होना, असंवेदनशील होने से कहीं बेहतर है !

5.       आज के लिए आखिरी बात।  इस दुनिया में कोई परफेक्ट नहीं है।  ये एक पोस्ट पढ़ के आप कंसेंट के चैंपियन हो जाएं ये उम्मीद नहीं है किसी को आपसे।  लेकिन इतनी उम्मीद ज़रूर है कि बात करना शुरू करें, और अगर गलती हो तो मान लें, बजाय ईगो ट्रिप पे जाने के। 

डिस्क्लेमर - मेरी वॉल पर सेक्स और सेक्सुअलिटी के सम्बन्ध में बात इसलिए की जाती है कि पूर्वाग्रहों, कुंठाओं से बाहर आ कर, इस विषय पर संवाद स्थापित किया जा सके, और एक स्वस्थ समाज का विकास किया जा सके | यहाँ किसी की भावनाएं भड़काने, किसी को चोट पहुँचाने, या किसी को क्या करना चाहिए ये बताने का प्रयास हरगिज़ नहीं किया जाता | ऐसे ही, कृपया ये प्रयास मेरे साथ न करें | प्रश्न पूछना चाहें, तो गूगल फॉर्म में पूछ सकते हैं | इन पोस्ट्स को इनबॉक्स में आने का न्योता न समझें | Google Form Link - https://forms.gle/9h6SKgQcuyzq1tQy6

©Anupama Garg 2022