Saturday, 30 April 2022

Gratitude Journal 2022 - 3 - Just Another Day

किसी किसी दिन कायनात एकदम गरीबनवाज़ मोड में चली जाती है 🙂 ❤


एक अदद जॉब ऑफर, एक अदद  छुट्टी, नए बैच का फॉर्मेशन, घर परिवार में सबके स्वास्थ्य  सबंधी शांति, सीखने को एक दोस्त से इतना कुछ मिलना, अकेलेपन का थोड़ा कम महसूस  होना, किसी दूसरी दोस्त के लिए स्पेस होल्ड कर पाना, किसी तीसरे दोस्त के लिए स्टैंड ले पाना, कुछ गा पाना, सब एक साथ हुआ।  


ख़ास बात - किसी बहुत ही पुरानी दोस्त का कुछ ऐसा कहना, कि आपको लगे कि आपको भी लोग समझते हैं। वे लोग जो आपके बचपन का हिस्सा हैं, जो आपके 'आप' बनने के सबसे लम्बे गवाहों में से हैं, उन्हें आप की बात समझ आती है।  ।  


मेरे सबसे करीबी लोग चाहते हैं, कि हम सब आने वाली पीढ़ी को वैचारिक और भावनात्मक ईमानदारी सिखा पाएँ । और क्या माँग लूँ एक ही दिन में?


शुक्राना ! दुआएँ ❤ 😘


#शुक्राने_की_डायरी_से - 3

 

©Anupama Garg 2022

Wednesday, 20 April 2022

Gratitude Journal 2022 - 2 Books

 किताबें जिन्होंने ज़िन्दगी बदल दी मेरी - 1

Gone with the wind  एक नाम था जो अटका था मेरे ज़ेहन में जब Titanic  बनी तब से।  काफी बात उठी थी तब उन फिल्मों की जिन्हें सबसे ज़्यादा अवार्ड्स या नॉमिनेशंस मिले थे।  मुझे यद् है मैंने मेरे English teacher  से पूछा कि इस नावेल के लेखक कौन हैं।  उन्होंने बताया, और मैं भूल गयी।  लेकिन एक अजीब सी कशिश थी इस नाम में।  कभी कभी यूँ ही बिना कुछ जाने समझे, मैं ये चार शब्द अपनी जुबां पे घुमा घुमा के उनका स्वाद चखती रहती।  

फिर जब 2006 में मैंने दिल्ली आयी, और मैंने एक कॉल सेंटर में नौकरी की, तो मैंने फिर से पढ़ना शुरू किया।  पढाई की किताबों के अलावा पिछले 6 साल में ज़्यादा कुछ नहीं पढ़ा था मैंने। इंग्लिश लिटरेचर बिलकुल भी नहीं पढ़ा था।  इसलिए सहकर्मियों से पूछा क्या पढ़ा जाये।  मुझे एक सहकर्मी ने ये किताब recommend की, और कई किताबों के साथ।  

मेरी ज़िन्दगी की धार बदल दी, project gutenberg की वेबसाइट, और इस महा लम्बे, शुरू के 100 पन्ने झेल, अमरीकी उपन्यास ने।  मैंने शुरू के 100 पन्ने सिर्फ ईगो और हेकड़ी के कारण झेले।  इस किताब ने मुझे पॉलिटिक्स, युद्ध, हिस्ट्री, अमरीका, सब चीज़ों के बारे में बहुत सिखाया, लेकिन मुझे याद सिर्फ एक बात रही, Scarlet और Rhett का प्रेम और उनका विछोह।  आज इस किताब को मैं दूसरी नज़र से देखती हूँ, लेकिन ये किताब उस वक़्त मेरे लिए वरदान साबित हुई।  उसके बाद जो पढ़ना शुरू हुआ फिर से, तो  चालू आहे :)

इसके बाद मेरे जीवन में आयी Johnathan  Livingston Seagull. किसी शार्ट टर्म ex ने मुझे गिफ्ट की थी।  लेकिन मुझे तब बिलकुल समझ नहीं आयी थी।  दस साल लगे मुझे वो किताब समझ आने से पहले।  लेकिन जब समझ आ गयी तब तक मैं जॉनाथन बन चुकी थी।  अगर आँखों में कोई सपना हो, तो भीड़ से अलग, भेड़ बने बिना, ज़िन्दगी बदलने के इस पुस्तक को पढ़ना कई लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है।  इस किताब के बाद मैंने Richard  Bach  की सभी किताबें पढ़ीं, मुझे उनकी One भी अच्छी लगी, लेकिन, इस किताब के लिए जो शुक्राना रहेगा, वो तो अलग है।  



The Witch of Portobello के बारे में तफसील से लिख चुकी हूँ पहले भी एक आध बार।  मुझसे 4 साल छोटी एक स्टूडेंट ने मुझे Paulo Coelho की एक किताब पढ़ने को दी, मैंने अगले ही दिन लौटा दी।  मैं 21 साल की थी।  मुझे, The Alchemist बिलकुल अच्छी नहीं लगी।  फिर जब मैं CAT की कोचिंग देने   इंस्टिट्यूट की लाइब्रेरी में मुझे Brida मिली।  और फिर मैं जा कर Paulo Coelho की जो भी किताबें उपलब्ध थीं, सब खरीद लायी।  


25 साल की उम्र में, इस किताब ने मुझे पहली बार NORMAL महसूस करवाया।  इस किताब ने मुझे सिखाया कि भीड़ से अलग होने के लिए, भीड़ से दूर जा कर खड़े होना भी ज़रूरी नहीं है। कि कभी कभी आपको कोई नहीं समझता, परिवार, दोस्त, माँ बाप, डॉक्टर, colleagues कोई नहीं।  लेकिन इस बात से कोई विशेष फ़र्क नहीं पड़ता।  लोग नहीं समझते इसलिए डरते हैं।  अगर उनके भीतर का डर निकाल दो, तो भीड़ में रह कर भीड़ से अलग होना साध सकते हो।  न भी साधना चाहो, और अंत में अगर अकेले होना चुनो, तो भी कोई बात नहीं।   Johnathan  Livingston Seagull का उस समय लॉजिकल सीक्वेंस निकली ये किताब मेरे लिए।  

किताबें बहुत पढ़ीं मैंने।  हिंदी में, अंग्रेजी में, अनूदित साहित्य भी। हर पुस्तक ने कुछ सिखाया।  हर किताब की एक कहानी है।  हर किताब का एक हक़ है मेरी ज़िन्दगी के शुक्राने पर। सभी कहानियाँ एक साथ नहीं कह पाती, आँखें और गला दोनों ही भर-भर आते हैं।  

लेकिन, ये कहानियाँ भस्म न हो जाएं एक दिन देह के साथ, इसलिए इन्हें कह देना ज़रूरी है।  अगर किसी दिन मुझे Alzheimer's हो जाये, तो ये मेरी याददाश्त फिर ज़िंदा करने की कोशिश में काम आ जाएं।  अगर कहीं कोई हो, इस देस में, इस दुनिया में, जिसे इन कहानियों की ज़रा भी ज़रूरत हो, तो ये उस तक पहुँच जाएँ।  इन कहानियों ने मेरा जीने में, ज़िंदा रहने में, ज़िंदादिल रहने में बहुत साथ दिया है।  इन किताबों ने मुझे बहुत संभाला है।  इन के लिए शुक्राना <3

#शुक्राने_की_डायरी_से - 2

©Anupama Garg 2022

Gratitude Journal 1

कई बार आप इर्द गिर्द देखते हैं, और आपको सिवाय निराशा और हताशा के कुछ नजर नहीं आता। आपको उदास होने के 100 कारण दिखते हैं, मां पिता की उम्र, घर वालों का स्वास्थ्य, खुद के स्वास्थ्य में आने वाले परिवर्तन, अपना करियर, अपने दोस्तों की बीमारी, देस दुनिया में हर तरफ लगी आग, भूखे मरते दुखी लोग, कभी खत्म न होने वाली लगती अपनी ज़िम्मेदारियों का बोझ, और न जाने क्या क्या । 
 
ऐसे में डिप्रेशन होना, थक जाना, उदासी स्वाभाविक है। खास तौर पर अगर पहले कभी भी mental health crisis झेला है तो और भी ज़्यादा। इससे कोप करने का सबका अपना अपना तरीका है। उन तरीकों में सही क्या, गलत क्या? लेकिन उन तरीकों में हानिकारक चीज़ें शामिल न हों तो बेहतर। 
 
जैसे मैं ये अनुभव से जानती हूं कि मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर शराब में गम गलत करने से बेहतर, काम में डूब लेना है। जैसे मेरे लिए किसी वक्त खाना एक बहुत आसान तरीका था इमोशंस से कोप करने का। लेकिन diabetes पता चलने के बाद अपने आप ही ये coping mechanisms बदलने लगे धीरे धीरे।
मेरे लिए बहुत से एक्सपेरिमेंट्स में से एक चीज जो पिछले कुछ सालों से काम करती है, वो है gratitude जर्नलिंग । हर साल मैं 7/15/21 दिन टाइप का कुछ लिखती हूं, इस बार लेकिन मैं पूरे 51 पोस्ट्स करना चाहती हूं। कर पाऊंगी या नहीं, ये नहीं जानती, लेकिन ये जानती हूं, कि मैं ये कर के देखना चाहती हूं।
 
मगर, 2 disclaimers के साथ - 1. सिर्फ इसलिए कि मैं कर पाऊंगी या करूंगी, इसका मतलब ये नहीं है, कि ये सबको करना चाहिए, या कि सबको ये अच्छा लगे। इसलिए अगर आपको मेरी पोस्ट्स से थोड़ी झल्लाहट हो, तो कुछ दिन के लिए उन्हें न देखें।
2. मैं खुद के लिए ये ध्यान रखना चाहती हूं, कि ये पोस्ट्स न तो मेरे अपने काम को कमतर आंकें, न ही मुझे टॉक्सिक पॉजिटिविटी का शिकार बना दें। किसी बात के लिए शुक्रगुज़ार होने का मतलब ये नहीं, कि मैं उसके लिए मेहनत नहीं करती। न ही ये कि मैं जीवन में आज की समस्याओं से मुंह मोड़ लूं, या उन्हें नकार दूं। 
 
इसलिए जब मुझे ऐसा लगेगा कि इन दोनों डिस्क्लेमर्स में से कोई भी समस्या सताने लगी है, तो रोक दूंगी ये journaling । हालांकि ऐसा होने का अंदेशा कम है, लेकिन अगर हुआ, तो कुछ और ट्राई किया जायेगा । तब तक के लिए journey चालू आहे 💕💟

Sunday, 10 April 2022

Cobalt Blue - A movie Review

 


एक ठहरा हुआ छोटा सा तालाब है, एक ठहरी हुई फिल्म है, कुछ ठहरे हुए फ्रेम्स हैं। एक कछुआ है, जिसका नाम Pablo Neruda रखने वाला नायक एक दिन पंख लगा के उड़ जाना चाहता है। मुझे PMT के लिए drop करके prepare करने वाला हर वो student याद आ गया जो अपने नाम के आगे Dr. लगा लेता था, छुपा के। तब manifestation, affirmation जैसे डेली 5 minutes guided meditation नहीं होते थे न । यही सपने होते थे, तालाब के कछुए से पृथ्वी का भार धोने वाला कच्छप अवतार बनने के सपने।

तनय नहीं बनी मैं फिल्म में बहुत ज़्यादा । कोई तो कारण है, इस बात के अलावा कि तनय gay है, कि मैं तनय के साथ ठगा हुआ महसूस नहीं कर पाई खुद को। मुझे याद नहीं कभी कि मैंने अपनी सेक्सुअलिटी को देह के आवेग में इतने ज़बरदस्त तरीके से महसूस किया हो।  लोग थे जिनके साथ मुझे अनुजा जैसा महसूस हुआ, लोग जिन्होंने जज नहीं किया, लोग जिन्होंने मुझे खाँचों में ठूँसने की कोशिश नहीं की; जिन्होंने मेरी देह से मेरा परिचय करवाया; क्योंकि उनका कोई कमिटमेंट नहीं था मेरे लिए। 

लेकिन पूरी तरह से अनुजा को भी नहीं महसूस कर पायी मैं, सिवाय एक एम्पथेटिक महसूसियत के, कि वो एक लड़की है जो ठगी गयी।  ये बात अलग है कि मैंने कभी जीवन में ठगा बहुत महसूस किया ही नहीं, न ही मुझ पर परिवार के 'उतने' दबाव रहे, मोल्ड में फिट होने के लिए।  मेरी सहेलियां भी नहीं रहीं, जो कभी मेरे लिए स्टैंड लेतीं, हालाँकि, एक ने कभी मुझे अपने लिए स्टैंड लेने को ज़रूर कहा, जो मैंने नहीं लिया। बस उसके काम में लंगी नहीं मारी इतना ही।   

मैंने जीवन के शुरुआती 22 - 25 सालों में खूब प्राइवेसी तलाशी।  एक कमरे में हम 5 जन और मेरी डायरी छुपाने की नीड हालाँकि मुझे मालूम था घर वाले नहीं पढ़ेंगे।  मेरी सेनेटरी नैपकिन छुपा कर रखने की नीड, क्योंकि घर में एक पिता और दो भाई हैं, जो उसी कमरे में रहते हैं।  जल्दी जल्दी मोहल्ले के shared latrine  में फ़ारिग होने की नीड कि सुबह लाइन लगी होती है।  फिर एक वक़्त आया, मैं दिल्ली गयी, होस्टल्स में नहीं रह पायी, और जब rented room  लिया उस पेइंग गेस्ट की तरह, तो प्राइवेसी की अफ़रात हो गयी।  बस लोगों को भावनात्मक रूप से ठगना नहीं आया।

उस फिल्म को जो कुछ ब्लू बनाता है, क्या वो वाकई उसे ब्लू बना रहा है, या पाब्लो नेरुदा को गाँव के तालाब की सीमा, और आसमान का अंतहीन नीला दिखा रहा है? सिवाय उसकी unethical polyamory के, मुझे कुछ भी नहीं खटका उसका।  उसका ये कहना कि क्या आज मैं अकेला सो जाऊँ; उसका bisexual होना, उसका बॉयफ्रेंड (अगर तनय उसका बॉयफ्रेंड था तो) की बहन के साथ भाग जाना, उसका लौट कर न आना, मुझे कुछ अजीब नहीं लगा।  शायद इसलिए कि जब आप अपनी जड़ें किसी शहर से उखाड़ लेते हैं एक बार, तो घर न होने का भाव आपके जीवन का स्थायी भाव बन सकता है।  ये इस पर निर्भर करता है, कि आप ऐसा कितनी बार करते हैं।  मेरे सभी विदेशी यायावर दोस्त याद आ गए मुझे उन कुछ फ्रेम्स में।  कहा न, बस एक ही चीज़ अखरी - उसकी unethical polyamory .

एक phase  था ज़िन्दगी में, जब queer  न होते हुए भी, मैंने लिटरेचर टीचर वाले loneliness , उस डेस्परेशन को भोगा है।  मैंने भले ही शॉक न लिए हों, न गे होने का 'ट्रीटमेंट' , लेकिन सेक्सुअलिटी की किसी भी fringe  पे खड़े होने का मेन्टल हेल्थ पर क्या असर पड़ सकता है, ये जानती हूँ।  3 किताबें छद्म नाम से क्यों लिखीं का कारण बहुत हद तक वही है, जो literature के प्रोफेसर की दयनीयता का है।  लेकिन उतना डेस्परेशन कितना दयनीय बनाता है आपको, खुद के लिए तक कितना undesirable, और उस desperation से बहार आने के लिए आपको एक मोमेंट ऑफ़ ट्रुथ चाहिए होता है; ये इस फिल्म ने शानदार तरीके से दिखाया। 

ये फिल्म बार बार जब देखूँगी मैं, तो सिर्फ उस प्रोफेसर के लिए, और उस nun के लिए जो अपना मोमेंट ऑफ़ ट्रुथ पहचान कर किसी तालाब के पाब्लो नेरुदा को पंख दे कर आसमान में उड़न भरने के लिए आज़ाद कर देते हैं। इस फिल्म के वो चंद scene जिसमें वो प्रोफेसर लेटरहेड पर sign करता है, और तनय से कपडे पहनने के लिए कहता है, और जिसमें Mary तनुजा को पैसे दे कर, सिफारिश लगा कर, नौकरी दिलवा कर भागने में मदद करती है; वो मुझे हमेशा याद दिलाएँगे की मैंने मेरे जीवन की पहली तीन किताबें क्यों, और कैसे लिखीं थीं। अपने मोमेंट ऑफ़ ट्रुथ को दोबारा एक फ्रेम में जीने के लिए। 

अच्छी फिल्म है, ठहराव लिए, कहीं कहीं सॉफ्ट पोर्न जैसी, कहीं कहीं कविता जैसी। प्रिविलेज वाली दुनिया तो है ही जिसमें 90 के दशक में लड़का लिटरेचर पढ़ रहा है, और लड़की हॉकी खेल रही है, लेकिन Kerala के बैकड्रॉप में स्वीकार पाना मुश्किल नहीं है एक संवेदनशील भाई और एक फेमिनिस्ट बहन को एक ही लड़के से प्यार हो जाना।शायद ये Kerala के प्रति मेरा बायस हो, या शायद लिबरल environments के प्रति, लेकिन उससे फिल्म के कथ्य पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता।  बस ये ध्यान रहे कि कोई भी फिल्म, मुद्दे के हर पहलू को सिरे से सिरे तक संभाल पाए ऐसा कम ही होता है।  फिल्म को फ्रेम्स के लिए देखिये, एम्पथी और सेल्फ एक्सेप्टेन्स की जर्नी के लिए देखिये, विमर्श इन्सिडेंटल है। 

 

 

 ©Anupama Garg 2022

 

Saturday, 9 April 2022

पोर्न से सम्बंधित कुछ और विचार - 2

 

#Sexuality_notes_by_anupama – 13

 

मैं लिखना कुछ और चाहती थी लेकिन पिछली पोस्ट पढ़ने के बाद आप में से कुछ लोगों ने कई और सवाल पूछे| अभी तक कोई 18 प्रश्न आये, सभी पोर्नोग्राफी से सम्बंधित, इसलिए मैंने उन्हें दो पोस्टों में विभाजित करने का निश्चय किया है | उसके बाद भी यदि पोर्नोग्राफी से सम्बंधित प्रश्न आये तो सोचेंगे कैसे उनका उत्तर दिया जाये |

Q - लोग पोर्न देखते क्यों हैं?

रिसर्च के आधार पर पोर्न देखने वालों ने तकरीबन 80 कारण बताये हैं, अपनी पोर्न देखने की इच्छा के पीछे | लोगों से कहा गया, वे अपने व्यक्तिगत कारण बताएं, बजाय ये सोचने के कि सामान्य कारण क्या होते होंगे | कोशिश की गयी है ऐसी researches  में कि उनमें से मान्यताओं, मिथकों को हटा कर लोगों के फर्स्ट हैंड इनपुट्स को सिरे से पढ़ा जा सके | इन कारणों को अलग अलग तरीकों से classify  कर के भी पढ़ा गया है | इनमें सबसे प्रमुख कारण थे सेक्स के बारे में जानने की उत्सुकता, उत्तेजना की चाह, सेक्स के लिए पार्टनर की उपलब्धि न होना, सेक्स में बारे में नयी जानकारी पाने की चाह, और बोरियत। 

Q - आप किस आधार पर कह रही हैं कि पोर्न देखना या पोर्न देखने की लत नार्मल है?

यहाँ कई चीज़ें देखने लायक हैं | एक तो पोर्न देखने की लत नाम की कोई चीज़ है भी है या नहीं, अभी इसको ले कर researchers के बीच डिबेट है |  अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अनुसार, पोर्न देखने की लत कोई मानसिक रोग नहीं है जैसे ड्रग्स या शराब की लत है | इसका मतलब ये नहीं कि मनुष्य के मन मस्तिष्क, और समाज पर पोर्न के दुष्प्रभाव नहीं पड़ते।

अब यहाँ समझने के लिए कई बातें हैं, जैसे किसी आदत और नशे में क्या अंतर है? जैसे, मुझे फिल्में देखने की आदत है, कभी कभी हद से ज़्यादा फिल्में भी देखती हूँ, लेकिन अभी उस स्थिति में नहीं पहुंची हूँ जहाँ इसे नशा कहूँ।  हाँ, अगर मेरी बिंज वाचिंग की आदत मुझे हफ़्तों अपने कमरे से बाहर न निकलने दे, मेरी नौकरी, मेरे काम को प्रभावित करने लगे तो मुझे ज़रूर सोचने की ज़रुरत है | जब हम इस नज़रिये से पोर्न देखने की आदत को देखें तो खुद ही समझ आ जायेगा कि आदत है या लत।  नशे की साइकोलॉजी समझने से भी यहाँ मदद मिलती है। 

लेकिन इसका मतलब ये हरगिज़ नहीं कि पोर्न के दुष्प्रभाव की बात न की जाये, या उस इच्छा के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश न की जाये। 

Q - पोर्न addiction से छुटकारा कैसे पाएं? पोर्न की लत से उभरने में या इसको छोड़ने में कौनसी चीजें मदद कर सकती हैं?

यदि सुविधा के लिए हम ये स्वीकार भी कर लें कि पोर्न देखना लत है, तो उससे छुटकारा पाना वैसा ही है, जैसे किसी भी और नशे से।  सबसे पहले ये समझने का प्रयास करें कि आपने पोर्न देखना शुरू क्यों किया था ? अगर वो कारण अब आप पर लागू नहीं होता, ये मन को समझ आ जाये, या स्वीकार हो जाये, तो पोर्न देखना बंद करना आसान हो जाता है। 

यदि आप पोर्न इसलिए देखते हैं कि सेक्स की सामान्य खुराक नहीं मिलती, और मास्टरबेशन करने के लिए visual stimulus  चाहिए, तो आप को ये समझना होगा कि सेक्सुअल ज़रूरतें ठीक तरीके से और ठीक मात्रा में पूरी हों ये ज़रूरी है।  यदि वो नहीं होगा तो कुंठा विकसित होगी, और कुंठा किसी न किसी तरह तो सामने आएगी ही।  चाहे पोर्न की लत हो, या मास्टरबेशन की या किसी और चीज़ की। 

ये समझना भी ज़रूरी है, कि पोर्न के नशे / लत / आदत और शराब, तम्बाकू आदि की लत में एक जैसी बात है withdrawal symptoms , कि दोनों को छोड़ने से फ़्रस्ट्रेशन होती है।  लेकिन इन दोनों बातों में एक फर्क भी है।  शराब के केस में cold turkey (एक दम से बिलकुल बंद कर देना) हो जाना काम कर सकता है,और उसके withdrawal  symptoms को मैनेज करने के medical तरीके भी हैं।  लेकिन सेक्स / masturbation  या पोर्नोग्राफी के consumption के केस में withdrawal  symptoms अक्सर intimate spaces  में ही दिखते हैं, और उन्हें मैनेज करने के लिए दवाएं आदि नहीं हैं।  ऐसे में रिश्तों पर दोनों तरह की आदतों, या उन्हें छोड़ने का प्रभाव अलग अलग तरह से पड़ता है। 

Q - क्या इसकी लत अविवाहित के लिए आने वाले वैवाहिक जीवन पर असर डालती है??

पोर्नोग्राफी हर देखने वाले के जीवन पर असर डालती है।  वैवाहिक जीवन हो, या विवाह के अतिरिक्त कोई रोमांटिक रिलेशनशिप, क्योंकि पोर्न का सम्बन्ध सेक्स से है, और सेक्स का असर रिलेशनशिप पर पड़ता ही है, इसलिए पोर्न देखने का असर तो रिश्तों पर पड़ेगा ही।

लेकिन, इस चीज़ को देखने का एक नजरिया ये भी है, कि क्या अगर दोनों साथ बैठ कर एक दूसरे के पसंदीदा पोर्न की बात करें, या साथ बैठ कर देखें, तो क्या ये संभव है कि दोनों लोग ये बेहतर समझ पाएँ कि एक दूसरे को क्या पसंद है, क्या उत्तेजित करता है ? क्या सेक्स, अलग अलग किस्म की फैंटसीज के प्रति मेन्टल ब्लॉक टूटना अधिक सुगम हो जायेगा ? अगर इस नज़रिये से देखा जाये तो क्या ये नहीं लगेगा कि साथ बैठ कर पोर्न देखना रिलेशनशिप में सेक्स की बेहतरी का तरीका बन सकता है ?

वहीँ दूसरी ओर ये भी संभव है कि एक व्यक्ति की पोर्न देखने की इच्छा हो, और दूसरे की न हो।  ऐसे में ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि जिसकी इच्छा है, वो पोर्न इसलिए नहीं देख रहा या देख रही कि उसे अपने पार्टनर से संतुष्टि नहीं मिल रही। पोर्न देखने का सम्बन्ध हमेशा असंतुष्टि से हो ये ज़रूरी नहीं। 

पोर्न देखने का एक जो खास दुष्प्रभाव है, वो ये है कि लोग ये भूल जाते हैं कि पोर्न फिल्मों में दिखाए जाने वाले लोग, उनके द्वारा किये जाने वाला सेक्स, उनकी sexual prowess  या उनकी sexual  performance विशेष परिस्थितियों में शूट की गयी हैं। इसलिए पोर्न देख कर ये ग़लतफ़हमी पाल लेना, कि आप या आपके साथी भी वैसे ही सेक्स को एक्सपीरियंस करेंगे जैसा पोर्न में दिखाया है, बहुत नुकसानप्रद, और असंतुष्टिकरक हो सकता है। 

इसके अलावा रही बात हद से अधिक पोर्न देखने की, तो वो तो व्यक्तिगत तौर पर भी हानिकारक है, वैसे ही जैसे किसी भी चीज़ की अति।  तो रिलेशनशिप के लिए तो हानिकारक होगी ही, इसमें तो दो राय नहीं ही है !

प्रश्न और भी थे, लेकिन पोस्ट बहुत लम्बी हो जा रही।  आप पोर्न पर लिखी पिछली पोस्ट यहाँ पढ़ सकते हैं - https://www.facebook.com/anu.25.25/posts/10209484009893751 . अगली पोस्ट में कुछ सवाल जो हम देखेंगे -

 

Q - संतुलित पोर्नोग्राफी क्या है?

Q - एथिकल पोर्न क्या है?

Q - क्या पोर्न देखने की कोई न्यूनतम आयु है?

Q - पेरेंट्स या टीचर्स क्या करें अगर उनका बच्चा पोर्न देखता हुआ मिल जाये?

Q - पोर्न से सम्बंधित कुछ कानूनी बातें। 

 

तब तक, पढ़ें, समझें, सोचें, विमर्श करें, और प्रश्न यदि भेजना चाहें तो यहाँ भेजें - Google Form Link - https://forms.gle/9h6SKgQcuyzq1tQy6

डिस्क्लेमर - मेरी वॉल पर सेक्स और सेक्सुअलिटी के सम्बन्ध में बात इसलिए की जाती है कि पूर्वाग्रहों, कुंठाओं से बाहर आ कर, इस विषय पर संवाद स्थापित किया जा सके, और एक स्वस्थ समाज का विकास किया जा सके | यहाँ किसी की भावनाएं भड़काने, किसी को चोट पहुँचाने, या किसी को क्या करना चाहिए ये बताने का प्रयास हरगिज़ नहीं किया जाता | ऐसे ही, कृपया ये प्रयास मेरे साथ न करें | प्रश्न पूछना चाहें, तो गूगल फॉर्म में पूछ सकते हैं | इन पोस्ट्स को इनबॉक्स में आने का न्योता न समझें |

©Anupama Garg 2022