Thursday, 30 January 2025

Spirituality Notes - 1 - Dharm

 

कल दोस्त Roopam Gangwar से किसी विषय पर बात हो रही थी। और उस बात को करते करते patriarchy, f3mini$m, आदि से होते हुए धर्म तक चली गयी। मैंने उन्हें बताया कैसे बचपन से धार्मिक माहौल मिलने के बाद, तकरीबन 20 - 22 साल की उम्र में मैंने धर्म पर सवाल उठाने शुरू किये, और कैसे कुछ साल पहले तक उठाती रही हूँ। पिछले कुछ सालों, खास तौर पर पिछले कुछ महीनों से धर्म के प्रति मेरी उत्सुकता, फिर से गहरी होने लगी है। और सवालों, agnosticism, atheism, आदि के बावजूद भी, धर्म के प्रति मेरा झुकाव, रुझान, कंडीशनिंग, जो भी कह लीजिये, अभी भी है। 
 
मैं कभी भी पूरी तरह नास्तिक नहीं रही। लेकिन एक समय में मुझे आस्तिकता के tag से बचने की ज़रूरत बहुत लगी है। यही ज़रूरत एक समय पर मुझे रैडिकल फेमिनिज़्म को ले कर भी लगी, यही ज़रूरत मुझे एक समय पर सेक्सुअलिटी, लाइफस्टाइल, LGBTQ या किसी भी तरह के activism को ले कर लगी है। सच ये है, कि मुझे सिस्टम्स, कम्युनिटीज़, ग्रुप्स, संघों, सम्प्रदायों, आदि में फिट होना नहीं आता। और सीखने की लाख कोशिश के बावजूद ये कभी मुझसे सीखा भी नहीं गया। Workplaces पर भी मैं बहुत अच्छी इंडिविजुअल कंट्रीब्यूटर हूँ, लेकिन एक लिमिट से ज़्यादा टीम वर्क नहीं कर पाती मैं। 
 
इसके अच्छे और बुरे, दोनों ही तरह के consequences हैं। लेकिन फ़िलहाल बात धर्म की हो रही है। 'धर्मो रक्षति रक्षितः' का मतलब है, धर्म उन लोगों की रक्षा करता है जो इसकी रक्षा करते हैं। लेकिन धर्म है क्या? जीव धर्म का निर्वाह करने के लिए क्या पहले शरीर धर्म का निर्वाह करना नहीं होगा? आखिर "शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।" और फिर क्या अलग अलग शरीरों का अलग अलग धर्म होगा? अगर हाँ तो फिर कौनसे धर्म की संस्थापना के लिए भगवान् अवतार लेंगे? अगर हाँ, तो फिर जब भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं - "सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।" (भगवद्गीता 18.66) सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरणमें आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर दूँगा, चिन्ता मत कर। (स्वामी रामसुखदास जी), तो ये ठीक भी लगता है, और निश्चय ही आसान भी। 
 
लेकिन एक दुविधा है - फिलोसॉफिकल कम, रियलिस्टिक ज़्यादा। रहना तो इसी दुनिया में है। और शरीर का निर्वाह भी करना ही होगा। अगर अच्छा, aligned sponsor जीवन का मिल जाये, जिसको आपके 'मामेकं शरणं व्रज' करने से समस्या नहीं हो, तब तो ठीक। अगर न मिले तब क्या? तब शरीर कैसे साधा जाये? और साथ ही साथ, अगर संप्रदाय, गुरु परंपरा, स्त्री शरीर को ले कर दिखती जुगुप्सा आदि से अपनी पटरी न बैठती हो, तो मामेकं शरणम व्रज में भी मीरा बाई जैसी तकलीफें आ सकती हैं। अब राज रानी तो हूँ नहीं कि सब छोड़ कर चल दूँ, और आंच न आवे? r@p3 इस दुनिया की बहुत व्यापक सच्चाई है। पंथ, सम्प्रदायों में समर्पण के नाम पर जो जो कुछ हो सकता है वो छुपा नहीं है। और फिर ग्रंथों में misogyny कूट कूट कर भरी पड़ी है। 
 
तमाम तरह के भावनात्मक उतार-चढ़ाव , बौद्धिक घुमक्कड़ी, शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक आधि-व्याधियों से गुज़रते हुए, एक चीज़ जो पुख्ता होती जा रही है, वो ये है कि धर्म एक choice है। आस्था एक चुनाव है। जो चुनना चाहे, उस पथ को चुने, जो न चुनना चाहे, न चुने। जितना चुन सके उतना चुने। और ये चुनाव जीवन के अलग अलग पड़ावों पर बदल सकता है। बस तमाम तरह के ढोंग, पाखंड आदि न हों। जो समझ आये करें। दूसरों पर थोपें नहीं। और कैसे करें? जैसे मन करे, तब तक जब तक कि आपके क्रिया कलाप और आपका पथ किसी और के लिए समस्या न बने। कोई धर्म को छोड़ दे तो उससे लड़ना क्यों? कोई धर्म की ओर लौट आये, उसकी शेमिंग क्यों करनी ? अगर किसी की कंडीशनिंग उसके जीवन को शांतिपूर्ण और सुचारु तरीके से चलने देती है, तो उसे जीने दीजिये। 
 
तब क्या करें जब किसी और का पथ आपके लिए समस्या बन रहा हो? अगर विश्वास और आस्था इतनी प्रबल हो कि स्वधर्म की रक्षा में मरना-मारना आपके बस की है, तो वो करें। यदि आपको युयुत्सु की तरह दूसरा पक्ष ठीक लगता हो तो चले जाएं। विदुर जी की तरह निस्पृह रहने की इच्छा हो, युद्ध न करना हो वो करें। बर्बरीक की तरह अपना सर कृष्ण को दान देना हो वो करें। भैया जो ठीक लगे वो करें, और दूसरों को करने दें। ये धर्म, फेमिनिज़्म, सेक्सुअलिटी, प्राइवेसी, स्वतंत्रता, सब पर लागू होता है मेरी समझ में। 
 
इसलिए इतने सब अड़खंजे देखने के बाद, धर्म के विषय पर एक ही बात समझ आ रही है पिछले 20 वर्षों में “हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् । कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिर्न्यथा ॥” - (श्री चैतन्य-चरितामृत मध्य-लीला 6.242)
 
#Spirituality_Notes_Anupama Note 1 - 30.1.2025 
 
नोट - मैं जान बूझ कर धर्म, पॉलिटिक्स आदि पर लिखने से कतराती हूँ। फालतू का स्ट्रेस मैं लेना चाहती नहीं। इसलिए, अपने विचार बेशक शेयर करें, बस ये उम्मीद न करें कि कोई डिस्कशन होगा ही।