कविता और डिस्कोर्स
पिछले कई दिनों में कई बार बात हुई कविता पर | आज दो बार बात हुई, दो अलग अलग कविताओं पर हुई, 3 अलग अलग दोस्तों से अलग अलग contexts में हुई | एक कविता में Rachit ने टैग किया | एक कविता के बारे में Anu Shakti Singh से डिस्कशन हुआ |
मेरी अपनी एक कविता और उस पर होने वाले backlash को ले कर कुछ दिन पहले मेरी कुछ बातें एक benevolent sexist , और 3 दोस्तों, Roopam Gangwar, मनीषा सिंह और Kalpana Jha आंटी से हुई | एक छोटा डिस्कशन Padmakar Dwivedi की वाल पर भी हुआ |
कविता को ले कर पहला डिस्क्लेमर ये कि मैं ये नहीं मानती कि मैं कविता या साहित्य की आलोचना की बहुत गहरी समझ रखती हूँ | मैं ये मानती हूँ, कि किसी कविता को जब भी मैं पढ़ कर समझना या उसकी आलोचना करना चाहती हूँ, तो मैं उसके कथ्य (मूल विचार), और उससे उपजने वाले भाव के बारे में बात करती हूँ | शैली या शिल्प समझने का मेरा कोई दावा नहीं है |
कविता को ले कर दूसरी बात ये कि मेरी नज़र में कविता बहुत व्यक्तिगत होती है | बहुत निजी | स्वान्तः सुखाय | इसलिए मेरे हिसाब से कविता का मूल उद्देश्य डिस्कोर्स नहीं होता | कविता डिस्कोर्स के लिए मुझे बहुत ही indirect माध्यम लगा करती है |
लेकिन कविता जो एक काम बहुत अच्छे से करती है वो है संवेदना को ट्रिगर करना | इसलिए अगर कोई कविता आपकी किसी विषय के बारे में संवेदना को ट्रिगर करती है, तो डिस्कोर्स की शुरुआत की जा सकती है | लेकिन की जाएगी या नहीं, ये पाठक विशेष पर निर्भर करेगा | सामान्यतः मैं कविता पर डिस्कोर्स करने में बहुत इंटरेस्ट तब तक नहीं ले पाती, जब तक कि मुझे कोई कविता बहुत ही strongly hit न करे |
तीसरी बात किसी भी कविता की आलोचना (positive या नेगेटिव) कैसी भी करते समय, मैं कवि या कवयित्री के कवित्त कर्म की यात्रा भी देखना समझना चाहती हूँ | मैं किसी wannabe feminist कवि की कविता विशेष को अच्छा यदि कहूँ तो मैं ये भी देखना चाहूँगी कि ये कविता अच्छी by एक्सीडेंट है, by डिज़ाइन, या कि वाकई उनकी feminism की समझ विकसित हुई है ?
अब ये बातें ध्यान रखते हुए, उस कविता (मार्कण्डेय की "• कौस्तुभि चटर्जी यानि साहसी और सुंदर •" ) के कथ्य पर टिप्पणी जो रचित ने पूछा -
1. पहली बात, विक्टिम का ग्लोरिफिकेशन ठीक वैसे ही है, जैसे 'निर्भया निर्भया' के नारे लगाना, लेकिन रेप की समस्या का ground लेवल पर कोई हल न निकलना |
2. दूसरी बात, काल्पनिक नायिका को सुन्दर, साहसी, आदि बताना कवी की (नायक की) fantasy ज़्यादा है, reality काम | अनुभव है व्यक्तिगत भी, और देखा परखा भी, कि जब किसी लड़की का नंबर पब्लिक्ली रिलीज़ किया जाता है, तो कितने वाहियात कॉल्स आते हैं, उसके मोबाइल फ़ोन होने न होने की प्रिविलेज पर, पढाई पर, मनःस्थिति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है | जब आप विक्टिम का imaginary glorification करते हैं तो आप उसके lived एक्सपीरियंस को ख़ारिज तो नहीं कर रहे, ये देखना ज़रूरी है |
3. एक तर्क दिया जा सकता है abusive भाषा को reclaim करने का | जैसे लोगों ने slut walk , pride walk आदि मूवमेंट्स कर के किये | लेकिन, यहाँ आप ये भूल जाते हैं, कि reclaimer का विक्टिम होना ज़रूरी है | Slut shaming के against slutshaming के विक्टिम्स उस शब्द को reclaim करें तभी सेंस बनेगा | ये काम allies या perpetrator का नहीं हो सकता |
4. जैसे किसी जज का ये कहना कि rape victim की शादी उसके rapist से करने से उसकी मर्यादा restore हो जाएगी एक वाहियात आईडिया है | वैसे ही किसी एक लड़के का ये कहना कि दूसरा लड़का ***** है, क्योंकि उसने तुम्हारी कीमत न जानी, सिर्फ खुद की chest thumping है | इसे मैं drama triangle में rescuer के रोल में देखती हूँ, लेकिन है ये उसी drama / abuse triangle का हिस्सा |
5. सबसे ज़रूरी बात, ये सब कहने के बावजूद - पॉप कल्चर का कोई भी हिस्सा, फिल्म, गाना, गीत लिखना, कविता, नृत्य, फैशन, कंडीशनिंग का हिस्सा भी है, और किसी का व्यक्तिगत संवेदन कर्म भी है |
इसलिए उसे डिस्कोर्स का हिस्सा बनाने के फायदे भी हैं, और नुकसान भी | फायदा ये कि आप उसके प्रभाव को एक बेहतर direction दे पाते हैं | नुकसान ये, कि बहुत ज़्यादा बेहतरी या direction देने की कोशिश रचनाकर्म का दम भी घोटती है |
यही कारण है कि कविता, गीत, फिल्में, पॉप कल्चर या रचनात्मक अभिव्यक्ति मुझे विमर्श के लिए एक सीमित माध्यम लगती है |
मेरे दृष्टिकोण से, मार्कण्डेय की कविता ने दो सरोकार भरपूर निभाए | व्यक्तिगत कवित्त कर्म, और डिस्कोर्स की शुरुआत | लेकिन इसके आगे क्या करना है, ये पाठक को खुद तय करना होगा |
©Anupama Garg 2022
©Anupama Garg 2022
कविता
कौस्तुभि चटर्जी यानि साहसी और सुंदर •
कौस्तुभि चटर्जी मुझे तुम्हारा नाम और थोड़ा-सा पता
बांद्रा के एक पेशाबघर में मिला
नाम और थोड़े-से पते के साथ यह भी लिखा था कि तुम छिनाल हो
थोड़ा-सा पता इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि
किसी थोड़े-से भले आदमी ने पते को थोड़ा-सा मिटा दिया था
मुझे कहने की इजाज़त दो तो सबसे पहले कहना चाहूंगा
तुम्हारे नाम में अपूर्व आकर्षण है
किसी पुराने गीत की तरह ये नाम मेरे ज़ेहन में रह-रहकर गूँजता रहा
तुम्हें यह भी बता दूँ कि मेरी एक प्रेमिका है
जिससे मैं बेहद प्यार करता हूँ
लेकिन उसका नाम मुझे कभी इस तरह नहीं लगा
मुझे नहीं मालूम उस टेक्स्ट को पढ़कर लोगों ने तुम्हारे चरित्र के बारे में क्या अनुमान लगाया होगा
मेरे मन में तो केवल एक छवि उभरी
कौस्तुभि चटर्जी यानि साहसी और सुंदर
साहसी उन तमाम स्त्रियों की तरह
जिनके भीतर रक्त बिजली की तरह दौड़ता है और जिनके थप्पड़ों के निशान कहीं अधिक गहरे और अर्थवान हैं
पेशाबघर की दीवारों पर लिखे गए कुंठित बयानों की तुलना में
और सुंदर रूप, रंग के अर्थ में नहीं
वह भी उसी अर्थ में
जिस अर्थ में साहसी।
- नीरव
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