- देखिये, पहली बात तो मेरी ज़िन्दगी में मैंने कुछ चुनाव ऐसे किये हैं जिनका ये फल है | जैसे, शादी न करने का एक मतलब ये है कि बहुत सा समय आपके पास सिर्फ और सिर्फ अपने लिए होता है | आपका विस्तृत परिवार उतना बड़ा नहीं होता जितना और लोगों का। बच्चे, पति, सास ससुर, ननद, जेठ, देवर, उनके पति-पत्नी, आदि के लिए आपको समय नहीं निकालना पड़ता। आपके अपने दोस्त आपकी priorities समझते हैं, और पति या पत्नी के दोस्तों और colleagues को निभाना नहीं होता। ये अच्छा है या बुरा, इसके दूसरे साइड इफेक्ट्स क्या हैं, इसके emotional consequences क्या हैं, ये सब बातें इस पोस्ट में नहीं कर रही हूँ। सिर्फ इतना कह रही हूँ कि समय की उपलब्धता बदल जाती है।
- दूसरी बात, मैं जो कुछ भी अभी करती दिखती हूँ, पढ़ाई लिखाई, नौकरी, डूडल, कलरिंग, मानस पाठ, संगीत, ग्रुप्स में कम्युनिटी इंगेजमेंट, सवालों के जवाब देना, Tarot, Numerology , मैडिटेशन, क्रोशिआ, मेहँदी, binge watching, इंडोर गेम्स, नयी hobbies, छोटा मोटा जो कुछ भी,वो सब मैं बरसों से करती आ रही हूँ। सिर्फ फेसबुक पर पिछले कुछ सालों से आने लगी हूँ। लेकिन ये सभी चीज़ें, और इनके अलावा और भी बहुत सी चीज़ें मेरी परवरिश का हिस्सा रही हैं। ये मैंने एक दिन, एक महीने, एक साल में नहीं सीखी हैं। इसलिए मैं कुछ अनोखा नहीं कर रही. थोड़ा थोड़ा कर के तो कोई भी 35 सालों में बहुत कुछ सीख सकता है :)
- तीसरी बात, मेरी परवरिश के तरीके ने एक काम जो बिलकुल किया है, वो है कुछ भी नया सीखने की मेरी काबिलियत का विकास। नतीजतन, अब जब मैं कुछ नया भी शुरू करती हूँ, तो उसे सीखने में वक़्त काम लगता है। इसलिए बहुत सी चीज़ें करना आसान हो जाता है।
- चौथी बात, मेरे पास इन दिनों नौकरी न होने के कारण समय की बहुतायत है। नौकरी न होने के अपने 1000 दुःख हैं, लेकिन घर वालों के साथ रहने का अपना प्रिविलेज भी है। मेरी मेन्टल हेल्थ इश्यूज की एक बहुत लम्बी हिस्ट्री है। और मैंने उन 12 - 15 सालों में ये सीखा है कि डिप्रेशन और स्ट्रेस में आने से बेहतर है सस्ते और क्रिएटिव शौक निभाना। बाकी जब काम होता है तो अपने आप फेसबुक भी कम हो जाता है।
- पांचवीं बात, चीज़ें हैं, जो मुझे नहीं आतीं, जो मुझे करने का मन है, जो मुझे सीखनी हैं, जैसे नृत्य सीखना, तैराकी सीखना, किसी रिलेशनशिप (शादी नहीं, लेकिन फ्लिंग्स भी नहीं) में होना, इन चीज़ों में से कुछ चीज़ें किसी के साथ करना, फिटनेस पे काम करना, वगैरह। लेकिन मैं इन्हें accomplishment की तरह नहीं करना चाहती, सहज भाव से जब होंगी, तब होंगी :)
- सबसे ज़रूरी बात, इनमें से अधिकतर चीज़ों को मैं accomplishment की तरह नहीं करती। मैं इन्हें अपने survival की कीमत पर नहीं करती। मैं इन्हें करती हूँ, तब जब मैं इन्हें afford कर सकती हूँ (मेरे डिप्रेशन के 12 - 15 साल मैंने कुछ भी नहीं किया, सिवाय अपने आप को धक्का मार के ऑफिस ले जाने के, ढेर सी कॉफ़ी पीने के, और desperately relationship में होने की कोशिश करने के), और तब जब मुझे इनमें मज़ा आता है। नहीं तो अब मैं इनमें से कुछ नहीं करती।
तो आप में से जिन लोगों को बहुत हैरत होती है ये सोच कर कि 'ऐसा कैसे संभव है ?' या जिन्हें आश्चर्यमिश्रित, या प्रेममिश्रित जलन होती है थोड़ी, आपके लिए सिर्फ 2 बातें। कोई चुनाव गलत नहीं होता, लेकिन अगर आपके पास अकूत पैतृक संपत्ति नहीं है, तो आपके चुनाव सीमित होंगे। आपकी लाइफस्टाइल, आपकी प्राथमिकताएँ और आपकी ज़िम्मेदारियाँ (परिस्थितियाँ) तय करेंगी कि आपके जीवन में आप क्या करेंगे।
आप कुछ भी चुन लें कुछ हमेशा रहेगा जिसे करने की इच्छा बाकी रह जाएगी। ये आपके जीवंत (जीवित नहीं) होने का सबूत है। वरना तो Inertia में पड़े रहना भी होने का एक तरीका है ही। इसलिए prioritize कर लें, और उसके बाद जो करना चाहें करें।
©Anupama Garg 2022
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