Tuesday, 22 February 2022

व्यक्तित्त्व विकास कैसे करें ?



आज थोड़ा अलग फिर से | जब हम ये कहते हैं कि हमें अपने व्यक्तित्त्व का विकास करना है, तो हम अक्सर कुछ और कह रहे होते हैं | हम कह रहे होते हैं, कि कुछ है हममें जो हमें काफी नहीं लगता | कोई आयाम है व्यक्तित्त्व का जो बेहतर हो सकता है | कुछ है जिसके कारण आत्मविश्वास कम है | लेकिन, एक मिनट रुक कर अब इसे एक दूसरे नज़रिये से देखें |

जब आप कहते हैं विकास करना है, तो क्या ये अहसास-ए -कमतरी नहीं है ? क्या ये ऐसा नहीं है जैसे हम ये कह रहे हों, कि हम जो भी हैं, जैसे भी हैं, वैसे खुद को स्वीकार नहीं हैं ?  हम बेहतर हो सकते हैं | किस से? अपने आप से बेहतर होना सबसे बड़ा झूठ है जो आपके दिमाग में भरा गया है | पहले अपने व्यक्तित्त्व को टुकड़ों में तोड़ें, अपने आप को, अपने जीवन को, अपनी यात्रा को हिस्सों में बांटें और फिर एक हिस्से की तुलना दूसरे से करें ? और फिर ये उम्मीद करें कि होलिस्टिक ग्रोथ या सम्यक विकास होगा? किसी पौधे की जड़ को अलग, और पत्तों को अलग, और तने को अलग उगते देखा है क्या कभी ?

अब कहना मनुष्य और पौधों की तुलना बेतुकी है | OK , बेशक है | फिर एक मनुष्य की तुलना दूसरे मनुष्य से - ये कैसे तुक की बात हुई? और फिर एक मनुष्य की तुलना अपने ही आप से - ये और भी वाहियात बात हुई :D लेकिन इसको हम compartmentalization, problem solving और पता नहीं क्या क्या नाम देते हैं | एकदम बढ़िया धंधा है !

अब पूछो तो फिर जहाँ हूँ वहां से आगे कैसे बढ़ूँ ? मेरा प्रश्न - आगे क्यों बढ़ना है ?

  1. अगर insecurity  के कारण, क्योंकि दूसरे से श्रेष्ठ दिखना है वगैरह वगैरह, तो मुझे मुआफ करें साहब, मुझे नहीं पता आप आगे कैसे बढ़ें, किसी सेल्फ हेल्प महानुभाव, बाबाजी आदि से पूछें | मैंने जीवन में किसी वक़्त में अपने आप को दूसरों के पैमानों से बहुत नापा है, एकदम वाहियात फीलिंग होती है, जो करना चाहते हो, जो कर सकते हो, वो भी नहीं कर पाते | ऐसी दशा मैं अपने दुश्मन की न चाहूँ तो ऐसी राय परिवार को, दोस्तों या पाठकों  को तो नहीं ही देनी मैंने |
  2. अगर इसलिए कि खुद के कल वाले version  से आगे बढ़ना है, तो भी मुझे माफ़ करें | मैंने ये भी बहुत साल किया है |  जिनके लिए ये तरीका काम करता है, उनके लिए बहुत अच्छा है | जब तक ये काम करता है, तब तक बहुत अच्छा | लेकिन इससे सिर्फ incremental growth  मिलती है, टुकड़े टुकड़े पर काम करेंगे तो growth  भी टुकड़ा टुकड़ा ही होगी | कुछ लोग इतने भर से संतुष्ट हो पाते हैं, कुछ नहीं हो पाते |  मैं नहीं हो पाई |
  3. अगर इसलिए कि कुछ करना है, क्योंकि कुछ करने का मन है (ये कुछ भी हो सकता है - नौकरी पाना, खेती करना, किताबें लिखना, लोगों की बात शांति से सुन पाना वगैरह ), तो चलो बात करते हैं | मुझे अब व्यक्तिगत तौर पर ये तरीका सबसे अच्छा लगता है | संभव है कल ये बदल जाये |


आज की तारीख में मैं ये नहीं सोचती कि मैं कौन हूँ, या कैसी हूँ | मैं ये सोचती हूँ कि मुझे करना क्या है, और क्यों? अगर मेरे करने से कुछ बेहतर होता हो, तो करने का कोई तुक भी है | वरना मन तो कुछ भी करने का हो सकता है, उसका क्या ? सो, मन नहीं, purpose  डिफाइन करती हूँ |

इस स्टेज में मुझे सामान्य तौर पर समय लगता है | इसलिए नहीं कि मुझे कोई confusion है | इसलिए कि मैं पलट के अफ़सोस नहीं करना चाहती, और गिल्ट ट्रिप पर भी नहीं जाना चाहती | मैं किसी और पर अपनी सफलता या असफलता का ठीकरा नहीं फोड़ना चाहती इसलिए जब एक बार ये समझ आ जाये कि करना क्या है, तो मैं एक timeline, एक प्लान ऑफ़ एक्शन, एक बजट, एक रिसोर्स लिस्ट बनाती हूँ | उसके बाद मैं शुरू हो जाती हूँ | मैं लोगों के वेलिडेशन का, उनकी सहमति का, उनकी ओपिनियन, उनके जजमेंट की चिंता कम ही करती हूँ |

लेकिन एक चीज़ जो मैं ज़रूर करती हूँ, वो है लोगों की बात एक बार सुनना और अगर उनके सवाल हैं (सवाल के नाम पर जजमेंट छुपाने का ढोंग नहीं ) तो उन सवालों के यथासंभव विचार कर के ईमानदारी से उत्तर देना |

इस प्रोसेस में कई बार मुझे अलग अलग चीज़ें सीखनी पड़ती हैं, कभी पैसे जुगाड़ने पड़ते हैं, कभी किसी और से सपोर्ट मांगना पड़ता है | कभी कभी ऐसा भी होता है कि मैं कुछ करना चाहूँ, लोग सपोर्ट भी करें, पैसा भी लगाए, और फिर भी किसी कारणवश वह काम हो न पाए | ऐसे में मैं साफ़ साफ़ बोल देती हूँ, बताती हूँ, पैसा, उनके resources, उनकी दी हुई सुविधा  लौटा सकूं तो लौटाती हूँ, न लौटा पाऊँ तो हरसंभव कोशिश करती हूँ कि उस काम को देर सबेर, कैसे भी पूरा करूँ |

कभी कभी ये कुछ भी नहीं हो पाता | लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं इस लायक नहीं | इसका मतलब बस इतना है कि मैंने कुछ किया, उसका कोई result चाहा, लेकिन जो रिजल्ट आया वो मेरा मनपसंद नहीं था |

ये सब होने के बाद -

  • कुछ चीज़ें होने लगती हैं |
  • कुछ मनचाहे results  मिलने लगते हैं |
  • कुछ नए skills  सीख पाती हूँ |
  • कुछ और चीज़ें CV में जुड़ जाती हैं |
  • Confidence  अपने आप आने लगता है, और अगर पहले से है तो विकसित होने लगता है |
  • फिर एक दिन व्यक्तित्त्व अपने आप पहले से अलग होता है (विकसित होता है, transformed  होता है ) |

तो कुल सार ये कि अगर आप काम करने लगेंगे, तो व्यक्तित्त्व तो अपने आप बदल ही जायेगा |

और फिर एक दिन मुझे लोग अलग तरह से देखने लगते हैं, लेकिन सिर्फ इसलिए कि मैंने शुरू में परवाह नहीं की कि वे मुझे कैसे देखते हैं | मैंने सिर्फ ये चुना कि मुझे क्या करना है, कैसे, और जिस जिस से जो कुछ पा सकती थी, वो पाया, उसका शुक्राना रखा, और उसको हर संभव ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल किया | जहाँ गलती हो गई (खुद को हमेशा पता होता है गलती कब हुई ), तो मान लिया |

मैं अपना sense of  purpose  कहाँ से drive  करती हूँ, और किसी नई चीज़ की शुरुआत कैसे करती हूँ, ये अलग पोस्ट्स का विषय है | फिर कभी :)

डिस्क्लेमर - मैं सिर्फ अपने जीवन के अनुभव और जो मैंने सीखा उसके आधार पर जीवन कौशल, लाइफ स्किल्स, आदि की बात करती हूँ | ये सब सीखने के बहुत से तरीके हैं, कृपया अपनी और मेरी ऊर्जा, सही क्या है, गलत क्या है कि डिबेट में व्यर्थ न करें | अच्छा लगे सीख लें, न अच्छा लगे, आगे बढ़ जाएं | नए विषयों से सम्बंधित प्रश्न हों जिन पर आप का मन हो कि मैं कुछ विचार करूँ, तो फॉर्म का लिंक पोस्ट के अंत में है, वहां अपने प्रश्न पोस्ट कर दें, मैं किसी पोस्ट में यथासंभव विस्तार और ईमानदारी से उत्तर दूँगी | इनबॉक्स में जवाब नहीं देती |

©Anupama Garg 2022

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