कल रात एक पोस्ट पर एक कमेंट किया, लेकिन ये विचार अस्तित्त्व को सौंप कर सोई थी, कि जब सुबह उठूँ तो थोड़ा हिम्मत से, थोड़ा और साफगोई से, थोड़ा और मन खोल के कह और लिख पाऊँ |
उससे पहले कुछ चीज़ें | एक बड़ी उम्र तक (लगभग 4 साल पहले तक ) मैंने ये कहा है कि मुझे अपनी लड़ाइयों से फुर्सत नहीं है, इसलिए, मैं feminism ही नहीं किसी भी तरह की political debate से दूर रहना चाहती हूँ | दूसरी बात - मैं cishetro हूँ | और मैं यौन जागरूकता पर बहुत सालों से बात करती रही हूँ छुप छुप कर | सिर्फ पिछले एक साल में, कुछ दोस्तों के साथ, कुछ अजनबियों के साथ बात करते करते, अब जा कर अपने नाम से, इस ID से बात करने लगी हूँ | पिछले चार सालों में हम बहुत बदले हैं, हमने बहुत सी additional लड़ाइयाँ लड़ी हैं, हमें उन बातों को सरोकार बनाना पड़ा है, जिन बातों को हमने कभी सरोकार की तरह देखा ही नहीं | और मेरे लिए इसमें व्यक्तिगत तौर पर दो चीज़ें शामिल रहीं | एक स्त्रियों की ज़िन्दगी को नज़दीक से परखना | दूसरा intersectionality को समझना |
इसलिए मैं अब जो भी लिखने जा रही हूँ, वो सब मेरे अपने भोगे यथार्थ, या आस पास भोगे यथार्थ हैं | और ये संख्या शायद आपकी कल्पना से बड़ी हो | मुझे नहीं पता कि ये किसी तरह का विमर्श है या नहीं | व्यक्तिगत तौर पर मुझे फ़र्क भी नहीं पड़ता, लेकिन मुझे लगता है, कि ये बातें कही जानी ज़रूरी हैं | हो सकता है आप में से कुछ लोग मेरी बातों को इसलिए ख़ारिज करें कि मैंने स्त्रीवाद की लम्बी लड़ाई नहीं लड़ी | कि मेरी अपनी misogyny अभी गयी नहीं | कि मैंने स्त्रीवाद से पहले यौनिकता को समझा | लेकिन मेरा सिर्फ इतना कहना है - ये लोगों के जीवन के सत्य हैं | ये बहुत सी उन औरतों के जीवन के सत्य भी हैं, जो इस पोस्ट को पढ़ कर शायद ये कहें 'ये सिर्फ sensationalizing है' | ये मुझसे पिछली पीढ़ियों के भोगे हुए यथार्थ भी हैं, ये अगली पीढ़ियों में बिलकुल ख़त्म हो जायेंगे, ऐसी कोई उम्मीद नहीं है मुझे |
सो अब वो बातें किन्हें मैं असल में कहना चाहती थी
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कुछ देर के लिए स्त्री'वाद' को अलग रखते हैं, सिर्फ औरतों की बात करते हैं | मैं ३१ साल की थी, जब मैंने पहली बार ये जाना कि इस देश की करोड़ों औरतों को टॉयलेट नसीब होने पर कैसे जूझना होता है | जिन्हें खेत में जाने से पहले अनजान मर्दों की उपस्थिति से डरना होता है | जिन्हें या तो अलसुबह, या धाम ढले खेत नसीब होता है | बाकि समय मिला तो ठीक नहीं तो जो है सो है | "अठै तो यान ही चालै बाई राज' पचासों बार गाँवों में बचपन में सुना है मैंने | बचपन से ब्लैडर होल्ड करने की, घर से टॉयलेट जा के निकलने की सीख मुझे मिली | भाइयों को भी मिली, लेकिन कारण अलग थे | उन्हें तहज़ीब के कारण सिखाया जाता था , मुझे इसलिए कि लड़की को सड़क पे टॉयलेट करने कहाँ मिलेगा | लेकिन 2015, देर रात, मैं एक पार्टी से लौटी, ब्लैडर फुल, होटल का लू इतना गन्दा कि इस्तेमाल का मन नहीं | सड़क पे मेरा दोस्त गाड़ी रोकने में खुश नहीं, और घर डेढ़ घंटा दूर | उस रात ने Feminism की लड़ाई के लिए मुझे पहली बार अवेयर किया |
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मैं 18 साल की थी, जब मेरी एक सहेली भाग ने भाग के शादी कर ली | मैंने बचपन से अपनी दादी से बहुत लड़ाई कि थी, कि कहीं गलती से मेरी शादी मेरी इच्छा के खिलाफ, बचपन में करने की सोचना भी मत, वर्ना मैं घर छोड़ के भाग जाऊंगी | दूसरी ओर मुझसे बेहतर, मुझसे ज़्यादा अच्छे घर से आने वाली ये सहेली?? उसी साल पापा के एक बहुत नज़दीकी दोस्त के बेटे ने प्रेम विवाह किया | सबने ख़ुशी ख़ुशी भैया की शादी रचाई | मैंने फिर पापा से पूछ ही लिया, कभी मैंने प्रेम विवाह रचा लिया तो? कभी मैं भाग गयी तो? पापा ने बहुत ही आराम से, बिना रिएक्ट किये सिर्फ एक ही बात कही - 'उसकी क्या ज़रुरत है ? घर लाना, मिलवाना, अच्छा होगा तो हम शादी कर देंगे, कुछ गलत लगेगा तो बता देंगे | हमारी रज़ामंदी न हो, और तुम्हें फिर भी करनी हो, ज़िद ठान लो तो तुम्हारी ज़िन्दगी की असली ज़िम्मेदार तो तुम ही हो " | और भी बहुत बातें, लेकिन ये चंद वाक्य मेरे साथ रहे |
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22 साल की उम्र में मैं घर वालों को 'convince' करके पढ़ने दिल्ली आयी | यहाँ लोकल गार्डियन थे | उन्हें अजीब लगता कि छोटे शहर की छोटी सी लड़की अपने आप हॉस्टल ढूंढ रही है, क्लास के लड़कों से बात कर रही है, उनके साथ बेंच पे बैठ के समोसे खा रही, और फिजिक्स के न्यूमेरिकल्स कर रही है ? और उनके बचपन के दोस्त जो मुझसे २० साल बड़े हैं, मेंटरशिप और फ्रेंडशिप के नाम पर मेरी maturity में एजुकेशन करना चाह रहे थे | कहानियाँ तो खूब बनाईं सुनाई गयीं हमारी माँ को, जब हमने आँख दिखा दी पहली ही बार | लेकिन उनकी दोस्ती उन्हें मुबारक, मेरी माँ का हीरा मैं थी | मम्मी आयी, हॉस्टल चेंज करवाया, एक और मामा जिनके बच्चे हमारी उम्र के थे, उन्हें कहा गया मेरा ध्यान रखने को |
मैंने माँ को कहा मुझे वापस ले चलो | उन्होंने कहा 'आज नहीं, घर वापस तभी आना जब scheduled है | आज अगर लौटा के ले गयी, तो कभी बहार पेअर नहीं रख पाओगी | मुझे भरोसा भी है, और अगर कुछ हो जाये तो डरना मत, सब संभाल लेंगे | "
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इस दौरान मैं 4 साल से depression से आलरेडी जूझ रही थी, लेकिन मैं उसकी डिटेल्स में अभी नहीं जाऊँगी | दिल्ली मेरे लिए कमोबेश शॉक ही था | लेकिन माँ ने जब मेरे दूसरे मामा को कह के मुझे उनके घर भेजा तो कहा, "उसकी तबीयत ठीक नहीं है " | मामा ने पूछा तबीयत को क्या हुआ, मैंने कहा कुछ नहीं | मामा और माँ ने फिर बात की, मामा ने माँ से पूछा क्या हुआ, और माँ ने कुछ बताया | मामा मुस्कुरा दिए धीरे से, बोले,ओह कोई बात नहीं, ये सब होता है, सब ठीक हो जायेगा |
मेरे साथ जो रहा वो था ये | मुझे ये यकीन ही नहीं, था, कि इस देश में मिडिल क्लास 'की लड़की' को मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी किसी समस्या से गुजरने का हक़ भी है | घर वालों ने कभी कुछ नहीं कहा, लेकिन आसपास जो दो चार केस देखे थे, उन्हें देख के मुझे हमेशा एक ही बात लगी - मुझे ऐसा नहीं बनना |
मेरी सहेलियों की एक एक कर शादी होने लगी थी | मुझे हैरत होती थी कितनी आसानी से इन लड़कियों ने सब पढ़ा लिखा ताक पे धर दिया था |
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अब आते हैं मुद्दे की बात पर | Cis hetero हूँ | और जवानी की उम्र में, सबको अपने पसंदीदा जेंडर के लोगों के लिए आकर्षण होता है | लेकिन अच्छी लड़कियां sex नहीं करती | अच्छी लड़कियाँ सेक्स की बात भी नहीं करतीं | लड़के लेकिन करते हैं ! और ये सच है, कि सेक्स का कन्वर्सेशन उत्तेजना, उत्सुकता तो जगाता ही है | ये नैसर्गिक है, स्वाभाविक भी है | बस एक बात ध्यान रखें, कि भाषाई तथा शारीरिक तौर पर लैंगिक हिंसा इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा है |
अगर सेक्स और उसके बारे में संवाद ज़रूरी नहीं, तो बच्चियों को रेप के बारे में कैसे समझायेंगे? उन्हें कैसे सम्बल देंगे इस बात का कि किसी लड़के को पसंद करना गलत नहीं है, गुनाह नहीं है ? कि किस करने से प्रेग्नेंट नहीं होते | कि प्रेग्नेंट होना कोई एक्सीडेंट नहीं होना चाहिए, वो planned इवेंट होना चाहिए | कि प्रेगनेंसी के अलावा भी चीज़ें हैं जिन्हें समझना ज़रूरी है | कि जैसे आपका सामान्य स्वास्थ्य आपकी ज़िम्मेदारी है, वैसे ही आपका यौन स्वास्थ्य भी | इसलिए सेक्स के बारे में खुल के बात करना ज़रूरी है ये समझने में बहुत वक़्त लगा |
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मेरे लिए यौन विमर्श का हिस्सा सिर्फ reproduction नहीं रहा | लेकिन बहुत सी महिलाओं की लड़ाई अभी भी वहां अटकी है, ये भी समझती हूँ | सेक्स, सेक्सुअल ऑर्गन्स, सेक्सुअल हेल्थ, जेंडर, सेक्सुअलिटी, इन सब बातों के बारे में न कोई बात करता है, न करना चाहता है | अधिकतर इन मुद्दों को अगर समझाया भी जाये तो वो ऊपर ऊपर सतही तरीके से कह दिया जाता है | जब हम लोग छोटे थे, तो माँ लोग कहतीं 'कौआ काट गया है, इसलिए किचन में नहीं जाएँगे " |
अब हम बच्चे जल्लाद - कहाँ है कौआ, कब आया, हमें क्यों नहीं दिखाया, कहाँ काटा , कैसे काटा , भगाया क्यों नहीं, इंजेक्शन लगवाने चलो, आदि आदि | शुरू शुरु में नाक में दम कर दिए थे | फिर एक दिन हमारी भी बारी आयी | गर्ल्स स्कूल, टॉयलेट में स्टेंस देखे, बड़ी दीदियों से पूछा - जवाब मिला जो कंस्ट्रक्शन साइट की मजदूर औरतें हैं, उनको कैंसर हो जाता है | पहुंचे माता के पास - बोले मजदूर औरतों के लिए कुछ करना है हमको |
पहली बार पीरियड क्या होता है, समझाया गया | जब हमारी बारी लगी तो हमको पता था | हमारे लिए सेनेटरी नैपकिन २० साल की उम्र तक माँ ही लाती रहीं | पहली बार सेनेटरी नैपकिन २० साल की उम्र में खरीदा, इमरजेंसी में | जनरल स्टोर से | दुकानदार नज़र चुरा के दिया | अख़बार में लपेट के काली प्लास्टिक की पन्नी में बाँध के मेडिकल स्टोर वाला देता | हम सोचते लोग बेवकूफ हैं क्या, उन्हें नहीं मालूम ऐसे क्या दिया जाता है? भक! सामने सामने लेकिन सीक्रेट | अब तो सब मिलता है | दिल्ली वगैरह में बिना पन्नी के भी मिल जाता है |
कल्पना कीजिये कितनी बॉडी शेमिंग कूट कूट के भर दी जाती है | किचन में नहीं जाना इसलिए, सारे घर वालों को पता है कि पीरियड हुआ है | दूध नहीं लेना और माँ घर नहीं है - इसलिए दूध वाले भैया, पड़ोस वाली चाची को भी पता है पीरियड हुआ है | लेकिन किसी को बताना मत, दाग न लग जाये, blah blah. अब हंसी आती है, तब कट के रह जाते थे भीतर ही भीतर |
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मैंने पहली बार पोर्न २३ साल की उम्र में देखा | जाने कैसा तो जी हो आया | आज भी अच्छी सुरुचिपूर्ण erotica बहुत चाव से पढ़ सकती हूँ, लेकिन पोर्न बर्दाश्त नहीं कर पाती | क्योंकि पोर्न और इरोटिका दोनों में औरत अधिकतर भोग्या है, लेकिन visual frames गले नहीं उतरते | मुझे 6 साल लगे ये डी-कोड करने में कि असली ज़िन्दगी और पोर्न में ज़मीन आसमान का अंतर है | लेकिन मुझे 6 साल लगे, क्योंकि मुझे 6 साल तक कोई ऐसा इंसान नहीं मिला, जिससे मैं खुल के बात ही कर पाती इस बारे में | और ये तब, जब कि मैं यौन विमर्श वाली कुछ communities का हिस्सा थी पहले से |
अब अगर ये कहूँ कि ये सब बातें मेरे स्त्रीवाद का हिस्सा नहीं हैं तो ये झूठ होगा | मुझे शिक्षा आसानी से मिली, इसलिए मेरी लड़ाई, थोड़ी आगे बढ़ पायी | मुझे मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी सम्बल घर में मिल पाए, इसलिए मैं उसके आगे बढ़ पायी | मुझे सुलझे लोग मिले बात करने के लिए, इसलिए मेरी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की लड़ाई थोड़ी आगे खड़े हो शायद | लेकिन सब कुछ सुन्दर नहीं था |
Communities में वो लोग भी थे, जो आज़ादी का जामा पहन के, यौन शोषण करना चाहते थे | लेकिन वैसे लोग तो दफ्तरों में भी मिले, वैसे लोग तो घरों में भी दिखे, वैसे लोग तो दोस्तों में भी मिले | तो क्या दुनिया पे भरोसा करना छोड़ दूँ? या क्या अपना सच कहना छोड़ दूँ?
मुझे यौनिकता के बारे में सलीके से बात करना गैर-मुल्क के लोगों ने सिखाया | उन्होंने घंटों मुझसे चैट्स की, मेरे सवालों के जवाब दिए | ये जानते हुए कि उनकी आधी बातों को मैं ये कह के खारिज करती थी "इन्हें मेरे culture और मेरे सामाजिक परिवेश की समझ नहीं है |" और ये सारी चीज़ें, मैं आज तक इस्तेमाल करती हूँ | मैं कभी विदेश नहीं गयी, लेकिन इन चीज़ों ने मदद तो मेरी यहाँ भी की | Safe रहने में, सही resources access करने में, लोगों को बेहतर समझ पाने में, अपने से छोटी लड़कियों को मज़बूत बना पाने में |
आज दसियों साल बाद, जब उनमें से कई लोग गुज़र गए हैं, कइयों के बारे में मुझे अब कुछ नहीं पता; मैं शुक्रगुज़ार हूँ उन औरतों और आदमियों की, जिन्होंने मुझे ये समझाया, कि मेरी यौनिकता मेरे जीवन का भी एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, और मेरे स्त्रीवाद का भी |
मेरे लिए यौन विमर्श स्त्री विमर्श का हिस्सा है क्योंकि:
1. वो मुझे हिम्मत देता है कि मैं अपनी माँ से कह सकूँ कि आप मेरे लिए लड़का ढूंढें, लेकिन वो जो मुझे हर स्तर पर बराबर समझे, जो मुझे भोग्या नहीं, साथी समझे | जो STD रिपोर्ट और करैक्टर सर्टिफिकेट में फ़र्क़ समझता हो |
2. मेरा यौन विमर्श मुझे हिम्मत देता है, कि कोई पुरुष जब लीचड़ चुटकुला सुनाये तो मैं उसे ठीक से समझा सकूँ कि internalized misogyny कैसी दिखती है |
3. यौन विमर्श मुझे marital रेप को मैरिटल रेप कहने की समझ और हिम्मत देता है |
4. यौन विमर्श ने मुझे consent की परतें सिखायीं | सिखाया कि alcohol के लिए न बोलना, और सेक्स के लिए न बोलना, दोनों एक बराबर हैं | और दोनों का सम्मान होना चाहिए |
5. यौन विमर्श ने मुझे न कहने के creative, सलीकेदार, non -negotiable तरीके सिखाये |
और भी बहुत कुछ
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ये सच है कि मुझसे पहले बहुत औरतों ने सतीप्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी, गोली बन कर राजस्थान के राज घरानों में दम तोड़ा, बहुत सी पढ़ने के लिए लड़ती रहीं, बहुत सी जाति से जूझती रहीं, बहुत सी workplace harassment से लड़ती रहीं | बहुत सी को दो वक़्त खाना नसीब नहीं, medical care नसीब नहीं | जिन्हें मयस्सर है, उन्हें इस्तेमाल करने में guilt फील होता है |
ये सब मेरी व्यक्तिगत समस्याएं नहीं हैं | लेकिन इसका मतलब ये नहीं, कि ये महत्त्वपूर्ण नहीं हैं | पर मैंने ये सब तब पहचानीं, जब मुझे अपनी यौनिकता को समझने की कोशिश करते करते 15 साल गुज़र गए | औजब मुझे morality की परतों को एक एक कर धकेलते हुए, अपने अस्तित्त्व को स्पेस देने की कोशिश करते हुए इतने साल गुज़र गए हैं |
हम औरतों को सिमट कर रहने की conditioning है, ऐसा मुझे लगता है | और ये इतनी internalized है कि हम priorities के पीछे spectrum की width को छुपाते हैं | हम लड़ते हैं, खुद के लिए, एक दूसरे के लिए भी, लेकिन एक सीमा के बाद रुक जाते हैं | इस में गलत कुछ नहीं | इसमें थकन भी होती है, ये भी सच है, लेकिन यही वो वक़्त भी है, जब आप खुद से, और दूसरी औरतों से कहें, "सुनो, तुम जो कर रही हो, उसमें मैं तुम्हारा साथ न भी दे पाऊं, तो भी मैं चाहती हूँ कि तुम भी जीतो ! " यही वो वक़्त है, जहाँ आप किसी को दूसरी औरतों के संघर्ष को जब छोटा करते देखें, तो कहें " तुम्हें ये समझना ज़रूरी है, कि अभी सफर बाकी है, अभी सबको बहुत सीखना है | दूसरों को सिखाओ, लेकिन तुम भी सीखो " यही वो समय है, जहाँ आप लड़कियों के साफ़ टॉयलेट, सेनेटरी नैपकिन को ज़रूरी समझें, लेकिन ब्रा स्ट्रैप और 'माय बॉडी माय राइट्स' के लिए लड़ने वाली लड़कियों और औरतों को नीचे न दिखाएं |
ये लड़ाई नहीं है, ये काम है | जो हमें अपनी औरतों, लड़कियों, और बच्चियों के लिए ही नहीं, पुरुषों, लड़कों, और बच्चों के लिए भी करना है | रास्ता कुछ भी हो सकता है | किसी का रास्ता शिक्षा से हो के गुज़र सकता है, किसी का लॉ से, और किसी का सेक्सुअलिटी से |
और भी बहुत कुछ है कहने के लिए, लेकिन वक़्त लगेगा |
© Anupama Garg 2021
Intense and engaging.i am sure you have developed this further.
ReplyDeleteIntense and engaging.
ReplyDeletesudheermittal@gmail.com