Sunday 19 June 2022

Father's Day पर

मेरे पिता के साथ के मेरे अनुभवों को सेलिब्रेट करने के लिए । सब पिता ऐसे नहीं होते। मेरे पिता मनुष्य हैं, उनकी अपनी सीमिततायें भी हैं। लेकिन मुझे अपने जीवन में क्या देखना है, किस पर फोकस करना है, ये मेरा चुनाव है। :)

एक पिता में कई पिता होते हैं। एक आदमी जिसकी वाकई इच्छा होती है, पिता बनने की, भरसक अच्छा पिता बनने की, वो अपनी पहली औलाद के होने पर लड़की होने के बावजूद बहुत खुशियां मनाता हैं। एक misinformed पिता अपनी लड़की को डॉक्टर से ले कर डॉक्टर तक भागता है। लेकिन जब तक ये misinformation जाती है तब तक इस पिता को दूसरा बच्चा हो जाता है।

अब ये समझदार पिता, अपने इंटेलिजेंट बच्चों की एनर्जी ठीक से channelize कर पाने के लिए उन दोनों को बराबरी से अच्छे स्कूल में पढ़ाता है, उनको अपने समझ से बेहतरीन जीवन मूल्य देता है, उनको अपनी संपत्ति नहीं समझता, उनको किसी और के चरणों में, गोद में सौंप नहीं देता। उनको बेहतरीन जीवन, भोजन, स्वास्थ्य आदि देता है।

लेकिन हर मनुष्य की तरह इस पिता के, इस पुरुष के ब्लाइंड स्पॉट्स हैं। इसलिए ये इन बच्चों की मां से बेहद प्यार करने के बावजूद अपना आपा खोता है, इसकी patriarchal बुनियाद अभी इसे नहीं पता है।

इसने चाइल्ड साइकोलॉजी तो पढ़ी है, लेकिन अभी feminism iski duniya mein पहुंचा नहीं है। इसमें किसी का कोई दोष भी नहीं है। ये अलग दुनिया का पिता है। लेकिन ये बहुत पक्की बात है कि अगर इसके दरवाज़े तक feminism जल्द पहुँच जाता तो ये उसे भी स्वीकार लेता।

इस सीमित संसाधनों वाले समझदार पिता के एक लड़का और होता है। एक कमरे के मकान में ये 3 बच्चों को, और अपनी पत्नी को ले कर रह रहा है। इसकी प्रायोरिटी दूर के रिश्ते नाते नहीं हैं। ये असंवेदनशील नहीं है, लेकिन इसने अपनी पहली दुनियावी प्रायोरिटी अपने बच्चे, दूसरी अपनी नौकरी, तीसरी अपनी पत्नी, और चौथी अपने बहुत ही रिश्तेदार जिनसे ये 'प्रेम' करता है, वो रखी है। एक नज़दीकी रिश्तेदार को गोद दे दो, अलग अलग स्कूल में पढ़ा लो, हिंदी medium में पढ़ा लो, आदि ये सब राय इस पिता को नहीं समझ आती।

अब ये पिता तीनों बच्चों से बराबर प्रेम करता है। तीनों के स्वास्थ्य, भोजन, पोषण, शिक्षा, hobbies, extracurricular activities में बराबर invested है। ये पिता अपनी समझ भर जो कर सकता है वो करता है। त्याग, प्रेम, दया, माया, ममता की मूर्त्ति साबित नहीं करने बैठी मैं इस पिता को। वो इसलिए कि अब पिता के बच्चे बड़े हो रहे हैं।

अब घर भी थोड़ा बड़ा है, बच्चे पढ़ लिख रहे / गए हैं, कमा रहे हैं, कम-ज़्यादा जो भी, जैसा भी। लेकिन पिता वट वृक्ष जैसा लगता है, और बच्चे अपनी ज़मीन ढूंढने के चक्कर में उससे लड़ रहे हैं अपने अपने तरीकों से।

मेन्टल हेल्थ पिता के घर का दरवाज़ा खटखटाती है। पिता समझदार तो है, लेकिन उसकी दुनिया का दायरा सीमित है। वो ये समझता है, नयी चीज़ों को समझ लेने की कोशिश भी कर रहा है, लेकिन पिता कभी कभी सिर्फ चुपचाप खड़ा देख रहा है, क्योंकि उसे नहीं पता कि वो क्या करे।

पिता अब थक भी रहा है। पिता कभी कभी दुश्मन लगता है। सब लोग घायल हैं, सब लोग आपस में बहुत लड़ रहे हैं। टिपिकल सर्कल है। लड़ने का, गिल्ट में जाने का, मन मसोसने का, सपने टूटने का, थकन का। पिता के भी, बच्चों के भी, और बच्चों की माँ की।

कई सालों बाद एक के बाद एक पिता के बच्चों पर कई मुसीबतें आती हैं। लोगों के बहुत नकाब उतरते हैं। जुझारू पिता, और उसकी जुझारू पत्नी धीरे धीरे देख पाते हैं कि काम उन्होंने ठीक ही किया था। दुश्मन समझने वाले बच्चे, अचानक ही बड़े हो गए हैं। जीवन मूल्य जो सिखाये गए थे, अब फाइनली जीवन जीने के काम आ रहे हैं।

पिता दोस्त हो गया है। पिता प्रेम, समाज, सेक्सुअलिटी, धर्म, पॉलिटिक्स, इकोनॉमिक्स, पर रोज़ कुछ नया सीख रहा है। पिता आश्चर्यचकित है। पिता कभी कभी अपने को पीछे छूटा महसूस करता है। लेकिन पिता अब दोस्त है, दोस्त आगे पीछे नहीं छूटते हैं।

पिता रिटायर हुआ है, और बीमार पड़ जाता है। जुझारू माँ के भी कदम थोड़े लड़खड़ाते हैं। पिता अब बच्चा है। तबियत के लिए डाँट भी मिलती है उसे कभी कभी। जो बच्चे पहले दोस्त बन गए थे, अब कभी कभी अभिभावक बन जाते हैं। पिता कभी कभी खीजता है। पिता की उम्र हो रही है ऐसा उसे लगता है। बच्चे कहते हैं आपकी उम्र में लोग न जाने क्या क्या करते हैं।

पिता चिंता करता है तो बच्चे मुस्कुरा देते हैं। ये अलग से बच्चे जो पिता ने पाले हैं, उनकी दुनिया, खुद वो बच्चे उसे कभी कभी समझ नहीं आते। आश्चर्य और प्रशंसा से भरा पिता अब आधा feminist हो गया है। पिता कॉल आउट किया जाता है। कभी सीखता है, कभी ज़िद करता है, कभी 'let's agree to disagree' पर समझौता कर लेता है। पिता सीख रहा है। पिता संतुष्ट है। पिता परिवार के लिए खुश है।

पिता से सिर्फ ये कहना है - आप ने हमेशा यही सिखाया कि आप मनुष्य हैं। आपको टोकने का, आपसे लड़ने का हक़ है - ये खुशकिस्मती है। आप हैं, और आप का प्यार है - ये lottery है।

जो काम हम बच्चों के साथ 3० बरस किया, अब वो खुद के साथ कीजिये। आपका काम हमारे (शायद ही) होने वाले बच्चों के लिए चिंता करना नहीं है। आपका काम अपनी तबियत, अपने शौक, अपने शरीर, अपनी पत्नी का ध्यान रखना है। और इस बात का मतलब ये नहीं है कि जब हम कहीं अटकेंगे तो आपके पास नहीं आएंगे।

आप की सलाह की ज़रूरत कम पड़ेगी, क्योंकि आपने हमें पालते समय ये चाहा था। लेकिन आपके प्यार की ज़रूरत हमेशा होगी। इसलिए स्वस्थ रहिये, चिंतामुक्त रहिये। संतुष्ट हैं, अब खुश भी रहिये, खुद के लिए भी। आप बने रहिये। <3 <3

3 कहानियाँ और हैं - माँ की, माँ के भीतर के पिता की, और पिता के भीतर की माँ की। कभी और, जब मन कर जाये :)

©Anupama Garg 2022

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