प्रेम कैसा है ? ८ अरब मनुष्यों और करोड़ों जीवों को सहेजती धरती जैसा |
कहिये कि वो तो प्यार नहीं कर्तव्व्य है ? कहिये कि वो प्रेम नहीं स्वभाव
है ? कितनी आसानी से हम मनुष्य आकाश को हल्के में लेते हैं | कितनी आसानी
से हम ये मान लेते हैं, कि हम सूर्य की ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं |
कभी कभी मुझे लगता है, विज्ञान और दर्शन प्रेम करना सिखाते हैं | बिज़नेस
बस बहुत दूर हो गया इन दोनों से, वर्ना समस्या तो वहां भी शायद इतनी न होती
|
क्यों मनुष्य ने खुदाई की होगी? इतना प्यार रहा होगा धरती से,
कि मन किया होगा इसे और जानूँ | और फिर चमकते टुकड़े मिले, और प्रेम का
स्वरुप बदल गया होगा | क्यों मनुष्य ने किसानी की होगी? नवांकुर फूटने पर
होने वाला आह्लाद कैसा रहा होगा, विस्मयकारक? फिर पेट में भोजन गया, और
संतुष्टि ने विस्मय की जगह ले ली होगी प्रायोरिटी लिस्ट में |
प्रेम
की अपनी यात्रा में, मैं अभी बाँटना सीख रही हूँ, सहना सीख रही हूँ| जितना
सीख चुकी हूँ, उससे कहीं ज़्यादा बाकी है | प्रेम की यात्रा में, मैं अपनी
अपेक्षाओं का बोझा न ओढ़ना चाहती हूँ, न लादना | मुझे भारी लगता है | ऐसे
बहुत लोग हैं, जिनकी साफ़ कह कर मांग पाने की क्षमता मुझे चमत्कृत करती है |
उनका सम्मान भी है | लेकिन मैं प्रेम अपने तरीके से टटोल के देखना चाहती
हूँ | मैं सहनशीलता, ठहराव, और बांटने की क्षमता के प्रति आग्रही हूँ |
लोग
हैं, जिनसे प्रेम है, और जब वे किसी और पर ध्यान देते हैं, तो अखरता है |
लेकिन ये जानती हूँ, कि वे लोग हैं, क्योंकि उनके माँ -पिता ने अपने प्रेम
की धरोहर इस देश-दुनिया को सौंप दी | ये भी कि वे लोग हैं, क्योंकि
उन्होंने अपना प्रेम दोस्तों, परिवार, रिश्ते-नातेदार, बृहत्तर समाज को दे
दिया | मगर सबसे ज़्यादा जो महसूसती हूँ, वो है ये बात कि मैं निर्बाध बहना
चाहती हूँ, और इसलिए ये आवश्यक है कि अपने जीवन के हर प्रेम के स्त्रोत को
भी निर्बाध बहने दूँ |
और निर्बाध बहने देने का, निर्बाध समेट
लेने का, निर्बाध समेट लिए जाने का, धरती से बड़ा उदाहरण क्या ही होगा ?
जिस क्षण में ये सोचती हूँ, उस क्षण में मेरे सामने जो बात एकदम निर्मल जल
के जैसी साफ़ चमकती है, वो है प्रेम का स्वरुप | मेरे लिए प्रेम कैसा है ? ८
अरब मनुष्यों और करोड़ों जीवों को सहेजती धरती जैसा |
© Anupama Garg 2021
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