9/8/2014
मुकुल
ने लिखा,
‘सुनयना चूडियाँ पहनती है,
और मैं सोच।’’
मगर,
क्या चूड़ियाँ और सोच,
नैसर्गिक रूप से, निश्चित ही,
एक दूसरे के विपरीत बोध है ?
क्या ही ज़रूरी है,
कि मैं जो सोच पहनूँ,
तो चूडियाँ छोड़ ही दूँ ?
मेरे घर में,
चूड़ियाँ और सोच,
साथ पहनी जा सकती हैं,
साथ पहनी जाती हैं
इसीलिए मैं,
चूड़ियाँ पहनती हूँ,
और साथ ही ...............सोच भी।
© Anupama Garg
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