Thursday 10 March 2022

Depression - How do I become normal again

This one came in the anonymous inbox.

Q - Hi Anupama.. I am 40+, a working woman. Have been suffering from depression for the last 10 years. I have lost interest in everything including sex. Once I was a creative person. How can I be normal again.

A - Hi,
First off, I must clarify that I am not a trained mental health professional. I share from my personal, lived experience, both as a mental health patient as well a partial caregiver for others. I also share from the experiences of other patients, caregivers, and from my study, discussions with experts in the mental health space.

So, please do not consider my opinion to be an alternative for professional help. However, if my response helps you in choosing the right course for yourself, I would have fulfilled the purpose of this series of posts.

1. Please consider that 10 years is a lot of time. It's a lot of good energy wasted, a lot of joy missed out on. That said, I'm fully aware that mental health is not an easy path to pursue. There could have been reasons related to financial affordability, access to good doctors (depending on where you're based), and also stigma and taboos because of misinformation.

I do not know if you have sought professional help in the past or not. If you have not, then please reevaluate and see why not, and if you can seek it now.

2. It is natural to lose interest in everything, including some of the things and hobbies you enjoyed the most. It is also natural to lose interest in sex. Does your partner know you're dealing with depression?

In an ideal scenario, one must tell one's family, friends, and support systems. That leads to mutual expectation setting and can ease off the pressure on the patient significantly.

Stressing about the loss of interest and libido causes further depression and vice versa in my limited experience. It then becomes a self perpetuating cycle, one you may not want to get caught up in.


3. "How can I be normal again?" Well, what I will say next, might not sound very regular. Feel free to reject this if that's what you feel. There is nosingular way of coping with these things, so it's perfectly OK to feel like this doesn't make sense.

What is really normal? Do you want to consider 'functional' instead, or 'lively' maybe, or 'happy' perhaps. Normal is what normal feels. The public definition is a 'norm', 'normative', even if it feels abnormal and fake to you. The so-called normal is driven by majority, I do not see any reason to judge yourself on that basis. So, if it's OK with you, I will share more on how to feel 'lively / happy / functional / etc.' again.
4. Given what I said above, here are a few tips:
Get a full health check up done. Sugar, hypothyroidism, Vit D deficiency, Obesity spectrum, all the usual culprits. Health in combination of mental health can be a cyclic process. Rule out the physical undiagnosed factors first, if any exist.
If you can afford and have access to a good therapist, you MUST consult one. There is absolutely no substitute to this. Post-Covid mental health treatments and access to experts has changed a lot. Online consultations have become possible. Consider those options, in case your town or city doesn't provide you great options.
You may not find the right counselor / doctor match instantly. It can take some time to find the expert best suited to your needs. Also, even then, the results are no magic. So be patient, both with yourself and the process.
Identify your triggers. See what triggers your depression. Identify your patterns. Are there specific events in your life, specific seasons, months of the year, time of the month when you feel particularly depressed. Are there people who trigger your sadness, issues you might be unable to address.
Create a routine of self -care. This could be anything - makeup, dressing up, eating tasty but healthy, reading, meditation, some new art form (something you haven't done in the past), exercise. By the way exercise really does help a lot.
However, this may not be easy. It can feel mechanical, it can feel disinteresting, It can feel boring, tiring, and a lot of other things. But it needs to be slowly done. Bit by bit.
See that your emotional and intellectual needs - friendships, hugs, solidarity, simple affection, quiet companionship can be met. At least some of them, and gradually work towards more. You might want to pick a social cause, new friendships, or not. Depends on how you feel energetically and otherwise.

Please understand that any of the things I have shared above are not prescriptive. These are some of the things I have tried, I have supported family and friends with, and we have seen results eventually.

For your specific needs, you need to work on yourself with someone trained in the process, on a regular basis, for some time consistently. That's something I strongly believe in - the combination of self-work and professional support.

I am really happy that you haven't given up on your mental health and accepted - 'aisa hi hai'. I really hope you find some ideas in this list and beyond that you would try and that would give you desirable results.

Much love.

#mentalhealth_notes_anupama - Note 9

©Anupama Garg 2022

आप इतना सब कैसे कर लेती हैं ?


  1. देखिये, पहली बात तो मेरी ज़िन्दगी में मैंने कुछ चुनाव ऐसे किये हैं जिनका ये फल है | जैसे, शादी न करने का एक मतलब ये है कि बहुत सा समय आपके पास सिर्फ और सिर्फ अपने लिए होता है | आपका विस्तृत परिवार उतना बड़ा नहीं होता जितना और लोगों का। बच्चे, पति, सास ससुर, ननद, जेठ, देवर, उनके पति-पत्नी, आदि के लिए आपको समय नहीं निकालना पड़ता।  आपके अपने दोस्त आपकी priorities  समझते हैं, और पति या पत्नी के दोस्तों और colleagues  को निभाना नहीं होता। ये अच्छा है या बुरा, इसके दूसरे साइड इफेक्ट्स क्या हैं, इसके emotional consequences  क्या हैं, ये सब बातें इस पोस्ट में नहीं कर रही हूँ। सिर्फ इतना कह रही हूँ कि समय की उपलब्धता बदल जाती है।  
  2. दूसरी बात, मैं जो कुछ भी अभी करती दिखती हूँ, पढ़ाई लिखाई, नौकरी, डूडल, कलरिंग, मानस पाठ, संगीत, ग्रुप्स में कम्युनिटी इंगेजमेंट, सवालों के जवाब देना, Tarot, Numerology , मैडिटेशन, क्रोशिआ, मेहँदी, binge  watching, इंडोर गेम्स, नयी hobbies, छोटा मोटा जो कुछ भी,वो सब मैं बरसों से करती आ रही हूँ।  सिर्फ फेसबुक पर पिछले कुछ सालों से आने लगी हूँ।  लेकिन ये सभी चीज़ें, और इनके अलावा और भी बहुत सी चीज़ें मेरी परवरिश का हिस्सा रही हैं।  ये मैंने एक दिन, एक महीने, एक साल में नहीं सीखी हैं।  इसलिए मैं कुछ अनोखा नहीं कर रही. थोड़ा थोड़ा कर के तो कोई भी 35 सालों में बहुत कुछ सीख सकता है :)
  3. तीसरी बात, मेरी परवरिश के तरीके ने एक काम जो बिलकुल किया है, वो है कुछ भी नया सीखने की मेरी काबिलियत का विकास।  नतीजतन, अब जब मैं कुछ नया भी शुरू करती हूँ, तो उसे सीखने में वक़्त काम लगता है।  इसलिए बहुत सी चीज़ें करना आसान हो जाता है।  
  4. चौथी बात, मेरे पास इन दिनों नौकरी न होने के कारण समय की बहुतायत है।  नौकरी न होने के अपने 1000 दुःख हैं, लेकिन घर वालों के साथ रहने का अपना प्रिविलेज भी है। मेरी मेन्टल हेल्थ इश्यूज की एक बहुत लम्बी हिस्ट्री है।  और मैंने उन 12 - 15 सालों में ये सीखा है कि डिप्रेशन और स्ट्रेस में आने से बेहतर है सस्ते और क्रिएटिव शौक निभाना। बाकी जब काम होता है तो अपने आप फेसबुक भी कम हो जाता है।
  5. पांचवीं बात, चीज़ें हैं, जो मुझे नहीं आतीं, जो मुझे करने का मन है, जो मुझे सीखनी हैं, जैसे नृत्य सीखना, तैराकी सीखना, किसी रिलेशनशिप (शादी नहीं, लेकिन फ्लिंग्स भी नहीं) में होना, इन चीज़ों में से कुछ चीज़ें किसी के साथ करना, फिटनेस पे काम करना, वगैरह।  लेकिन मैं इन्हें accomplishment  की तरह नहीं करना चाहती, सहज भाव से जब होंगी, तब होंगी :)
  6. सबसे ज़रूरी बात, इनमें से अधिकतर चीज़ों को मैं accomplishment की तरह नहीं करती।  मैं इन्हें अपने survival की कीमत पर नहीं करती।  मैं इन्हें करती हूँ, तब जब मैं इन्हें afford कर सकती हूँ (मेरे डिप्रेशन के 12 - 15  साल मैंने कुछ भी नहीं किया, सिवाय अपने आप को धक्का मार के ऑफिस ले जाने के, ढेर सी कॉफ़ी पीने के, और desperately relationship में होने की कोशिश करने के), और तब जब मुझे इनमें मज़ा आता है।  नहीं तो अब मैं इनमें से कुछ नहीं करती।  

तो आप में से जिन लोगों को बहुत हैरत होती है ये सोच कर कि 'ऐसा कैसे संभव है ?' या जिन्हें आश्चर्यमिश्रित, या प्रेममिश्रित जलन होती है थोड़ी, आपके लिए सिर्फ 2 बातें।  कोई चुनाव गलत नहीं होता, लेकिन अगर आपके पास अकूत पैतृक संपत्ति नहीं है, तो आपके चुनाव सीमित होंगे। आपकी लाइफस्टाइल, आपकी प्राथमिकताएँ और आपकी ज़िम्मेदारियाँ (परिस्थितियाँ) तय करेंगी कि आपके जीवन में आप क्या करेंगे।


आप कुछ भी चुन लें कुछ हमेशा रहेगा जिसे करने की इच्छा बाकी रह जाएगी।  ये आपके जीवंत (जीवित नहीं) होने का सबूत है। वरना तो Inertia  में पड़े रहना भी होने का एक तरीका है ही। इसलिए prioritize  कर लें, और उसके बाद जो करना चाहें करें। 

©Anupama Garg 2022

Friday 4 March 2022

वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो भुला दे।

आज न जाने कौन कौन याद आ रहा है।  वो दोस्त जो एक वेबसाइट से मिला था, 2 साल तक ज़िन्दगी में रहा और एक दिन 34 साल की उम्र में मर गया।  वो सहेली, जो समझती थी, दयालु थी, ख़ास नहीं थी, लेकिन एक दिन अचानक सुसाइड से मर गयी। मेरे दादा-दादी, मेरे नाना-नानी, मेरे कई रिश्तेदार जिन्हें किसी वक़्त बहुत प्यार किया था, और आज उनसे दूर ही रहने में ठीक लगता है | हर वो लड़का, हर वो आदमी, जो जीवन में आया, और कुछ साल रहा।  हर वो लड़की, हर वो औरत, जिसने दोस्ती और बहनापे की आड़ में कोई और ही एजेंडा चलाया। एक दोस्त जो पिछले साल Covid  की वेव में बिना Covid के गुज़र गया। 

 

मुझे नहीं पता कि अचानक से ऐसे क्यों लग रहा है जैसे दुःख और शोक मुझे डुबा देगा। जैसे समंदर की लहरें बढ़ी आ रही हों, और हाथ छोटे जा रहे हों, एक एक कर के।  जबकि कुछ ख़ास, कुछ नया नहीं हुआ है।  दिन भी अच्छा ही निकला है, काम और otherwise  दोनों ही तरह से। जैसे empath energy  blast  हो।  (समझाने को नहीं कहियेगा please) क्योंकि समझा नहीं पाऊँगी।  खैर फिलहाल एक दुआ भेज रही हूँ हवाओं के साथ, हर उस दिल तक जो दुख रहा हो। कहीं, किसी के दिल को राहत मिले तो मैं सोचूंगी मुझे भी मिली।  और क्या कहूँ फिलहाल :)


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मन_के_गहरे_कोनों_से - 23 #अनुपमा_आपबीती_जगबीती

©Anupama Garg 2022

हम्म।

मैं तुम से प्रेम करता हूँ।  

हम्म।  

हम्म?

हाँ।  

अरे मतलब क्या हुआ? कुछ तो कहो?

प्रेम करते तो हो, कर लो डीकोड।  

बिना संवाद के गलत समझ लिया तो?

प्रेम करते हो, लेकिन संवाद की शर्त पर।  

बिना संवाद के प्रेम कैसे होगा? होगा तो ठहरेगा कैसे?

क्यों ठहराना है उसे?

प्रेम मिलना भी तो चाहिए।  

प्रेम करते हो कि व्यापार?

पहेलियाँ न बुझाओ। साफ साफ कह दो जो भी कहना है।  

कुछ नहीं कहना, यही सच है।  

ईमानदारी, कम्युनिकेशन, एम्पथी, उन सब का क्या?

वो सह अस्तित्त्व के टूल्स हैं, रिलेशनशिप के, प्रेम के नहीं।  

रिलेशनशिप बिना प्रेम के होगी?

क्या नहीं होतीं दुनिया में अधिकतर?

तो प्रेम कैसा होगा?

पता नहीं।  

हम्म।  

हाँ।  

#मन_के_गहरे_कोनों_से - 22 #lovenotes_anupama #अनुपमा_आपबीती_जगबीती

©Anupama Garg 2022

Thursday 3 March 2022

कौस्तुभि चटर्जी यानि साहसी और सुंदर - A critical review

 

कविता और डिस्कोर्स

पिछले कई दिनों में कई बार बात हुई कविता पर | आज दो बार बात हुई, दो अलग अलग कविताओं पर हुई, 3 अलग अलग दोस्तों से अलग अलग contexts में हुई | एक कविता में Rachit ने टैग किया | एक कविता के बारे में Anu Shakti Singh से डिस्कशन हुआ |

मेरी अपनी एक कविता और उस पर होने वाले backlash को ले कर कुछ दिन पहले मेरी कुछ बातें एक benevolent sexist , और 3 दोस्तों, Roopam Gangwar, मनीषा सिंह और Kalpana Jha आंटी से हुई | एक छोटा डिस्कशन Padmakar Dwivedi की वाल पर भी हुआ |

कविता को ले कर पहला डिस्क्लेमर ये कि मैं ये नहीं मानती कि मैं कविता या साहित्य की आलोचना की बहुत गहरी समझ रखती हूँ | मैं ये मानती हूँ, कि किसी कविता को जब भी मैं पढ़ कर समझना या उसकी आलोचना करना चाहती हूँ, तो मैं उसके कथ्य (मूल विचार), और उससे उपजने वाले भाव के बारे में बात करती हूँ | शैली या शिल्प समझने का मेरा कोई दावा नहीं है |

कविता को ले कर दूसरी बात ये कि मेरी नज़र में कविता बहुत व्यक्तिगत होती है | बहुत निजी | स्वान्तः सुखाय | इसलिए मेरे हिसाब से कविता का मूल उद्देश्य डिस्कोर्स नहीं होता | कविता डिस्कोर्स के लिए मुझे बहुत ही indirect माध्यम लगा करती है |

लेकिन कविता जो एक काम बहुत अच्छे से करती है वो है संवेदना को ट्रिगर करना | इसलिए अगर कोई कविता आपकी किसी विषय के बारे में संवेदना को ट्रिगर करती है, तो डिस्कोर्स की शुरुआत की जा सकती है | लेकिन की जाएगी या नहीं, ये पाठक विशेष पर निर्भर करेगा | सामान्यतः मैं कविता पर डिस्कोर्स करने में बहुत इंटरेस्ट तब तक नहीं ले पाती, जब तक कि मुझे कोई कविता बहुत ही strongly hit न करे |

तीसरी बात किसी भी कविता की आलोचना (positive या नेगेटिव) कैसी भी करते समय, मैं कवि या कवयित्री के कवित्त कर्म की यात्रा भी देखना समझना चाहती हूँ | मैं किसी wannabe feminist कवि की कविता विशेष को अच्छा यदि कहूँ तो मैं ये भी देखना चाहूँगी कि ये कविता अच्छी by एक्सीडेंट है, by डिज़ाइन, या कि वाकई उनकी feminism की समझ विकसित हुई है ?

अब ये बातें ध्यान रखते हुए, उस कविता (मार्कण्डेय की "• कौस्तुभि चटर्जी यानि साहसी और सुंदर •" ) के कथ्य पर टिप्पणी जो रचित ने पूछा -

1. पहली बात, विक्टिम का ग्लोरिफिकेशन ठीक वैसे ही है, जैसे 'निर्भया निर्भया' के नारे लगाना, लेकिन रेप की समस्या का ground लेवल पर कोई हल न निकलना |

2. दूसरी बात, काल्पनिक नायिका को सुन्दर, साहसी, आदि बताना कवी की (नायक की) fantasy ज़्यादा है, reality काम | अनुभव है व्यक्तिगत भी, और देखा परखा भी, कि जब किसी लड़की का नंबर पब्लिक्ली रिलीज़ किया जाता है, तो कितने वाहियात कॉल्स आते हैं, उसके मोबाइल फ़ोन होने न होने की प्रिविलेज पर, पढाई पर, मनःस्थिति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है | जब आप विक्टिम का imaginary glorification करते हैं तो आप उसके lived एक्सपीरियंस को ख़ारिज तो नहीं कर रहे, ये देखना ज़रूरी है |

3. एक तर्क दिया जा सकता है abusive भाषा को reclaim करने का | जैसे लोगों ने slut walk , pride walk आदि मूवमेंट्स कर के किये | लेकिन, यहाँ आप ये भूल जाते हैं, कि reclaimer का विक्टिम होना ज़रूरी है | Slut shaming के against slutshaming के विक्टिम्स उस शब्द को reclaim करें तभी सेंस बनेगा | ये काम allies या perpetrator का नहीं हो सकता |

4. जैसे किसी जज का ये कहना कि rape victim की शादी उसके rapist से करने से उसकी मर्यादा restore हो जाएगी एक वाहियात आईडिया है | वैसे ही किसी एक लड़के का ये कहना कि दूसरा लड़का ***** है, क्योंकि उसने तुम्हारी कीमत न जानी, सिर्फ खुद की chest thumping है | इसे मैं drama triangle में rescuer के रोल में देखती हूँ, लेकिन है ये उसी drama / abuse triangle का हिस्सा |

5. सबसे ज़रूरी बात, ये सब कहने के बावजूद - पॉप कल्चर का कोई भी हिस्सा, फिल्म, गाना, गीत लिखना, कविता, नृत्य, फैशन, कंडीशनिंग का हिस्सा भी है, और किसी का व्यक्तिगत संवेदन कर्म भी है |

इसलिए उसे डिस्कोर्स का हिस्सा बनाने के फायदे भी हैं, और नुकसान भी | फायदा ये कि आप उसके प्रभाव को एक बेहतर direction दे पाते हैं | नुकसान ये, कि बहुत ज़्यादा बेहतरी या direction देने की कोशिश रचनाकर्म का दम भी घोटती है |

यही कारण है कि कविता, गीत, फिल्में, पॉप कल्चर या रचनात्मक अभिव्यक्ति मुझे विमर्श के लिए एक सीमित माध्यम लगती है |

मेरे दृष्टिकोण से, मार्कण्डेय की कविता ने दो सरोकार भरपूर निभाए | व्यक्तिगत कवित्त कर्म, और डिस्कोर्स की शुरुआत | लेकिन इसके आगे क्या करना है, ये पाठक को खुद तय करना होगा |

©Anupama Garg 2022

कविता
कौस्तुभि चटर्जी यानि साहसी और सुंदर •
कौस्तुभि चटर्जी मुझे तुम्हारा नाम और थोड़ा-सा पता
बांद्रा के एक पेशाबघर में मिला
नाम और थोड़े-से पते के साथ यह भी लिखा था कि तुम छिनाल हो
थोड़ा-सा पता इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि
किसी थोड़े-से भले आदमी ने पते को थोड़ा-सा मिटा दिया था
मुझे कहने की इजाज़त दो तो सबसे पहले कहना चाहूंगा
तुम्हारे नाम में अपूर्व आकर्षण है
किसी पुराने गीत की तरह ये नाम मेरे ज़ेहन में रह-रहकर गूँजता रहा
तुम्हें यह भी बता दूँ कि मेरी एक प्रेमिका है
जिससे मैं बेहद प्यार करता हूँ
लेकिन उसका नाम मुझे कभी इस तरह नहीं लगा
मुझे नहीं मालूम उस टेक्स्ट को पढ़कर लोगों ने तुम्हारे चरित्र के बारे में क्या अनुमान लगाया होगा
मेरे मन में तो केवल एक छवि उभरी
कौस्तुभि चटर्जी यानि साहसी और सुंदर
साहसी उन तमाम स्त्रियों की तरह
जिनके भीतर रक्त बिजली की तरह दौड़ता है और जिनके थप्पड़ों के निशान कहीं अधिक गहरे और अर्थवान हैं
पेशाबघर की दीवारों पर लिखे गए कुंठित बयानों की तुलना में
और सुंदर रूप, रंग के अर्थ में नहीं
वह भी उसी अर्थ में
जिस अर्थ में साहसी।
- नीरव ❤️